Kamakhya Devi Kavach, कामाख्या कवच

Kamakhya Devi Kavach/कामाख्या कवच

(Kamakhya Devi Kavach) नारद उवाच कामाख्या कवच:

कवचं कीदृशं देव्या, महा-भय-निवर्तकम्। कामाख्यायास्तु तद् ब्रूहि, साम्प्रतं मे महेश्वर।।

श्रीमहादेव उवाच:

श्रृणुष्व परमं गुह्यं, महा-भय-निवर्तकम्। कामाख्यायाः सुर-श्रेष्ठ, कवचं सर्व-मंगलम्।।

यस्य स्मरण-मात्रेण, योगिनी-डाकिनी-गणाः। राक्षस्यो विघ्न-कारिण्यो। याश्चात्म-विघ्नकारिकाः।।

क्षुत्-पिपासा तथा निद्रा, तथाऽन्ये ये च विघ्नदाः। दूरादपि पलायन्ते, कवचस्य प्रसादतः।।

निर्भयो जायते मर्त्यस्तेजस्वी भैरवोपमः। समासक्त-मनासक्त-मनाश्चापि, जप-होमादि-कर्मसु।।

भवेच्च मन्त्र-तन्त्राणां, निर्विघ्नेन सु-सिद्धये।।

अथ कवचम्:

ॐ प्राच्यां रक्षतु मे तारा, कामरुप-निवासिनी। आग्नेय्यां षोडशी पातु, याम्यां धूमावती स्वयम्।।

नैऋत्यां भैरवी पातु, वारुण्यां भुवनेश्वरी। वायव्यां सततं पातु, छिन्न-मस्ता महेश्वरी।।

कौबेर्यां पातु मे नित्यं, श्रीविद्या बगला-मुखी। ऐशान्यां पातु मे नित्यं, महा-त्रिपुर-सुन्दरी।।

ऊर्ध्वं रक्षतु मे विद्या, मातंगी पीठ-वासिनी। सर्वतः पातु मे नित्यं, कामाख्या-कालिका स्वयम्।।

ब्रह्म-रुपा महाविद्या, सर्वविद्यामयी-स्वयम्। शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा, भालं श्री भव-मोहिनी।।

त्रिपुरा भ्रू-युगे पातु, शर्वाणी पातु नासिकाम्। चक्षुषी चण्डिका पातु, श्रोत्रे नील-सरस्वती।।

मुखं सौम्य-मुखी पातु, ग्रीवां रक्षतु पार्वती। जिह्वां रक्षतु मे देवी, जिह्वा ललन-भीषणा।।

वाग्-देवी वदनं पातु, वक्षः पातु महेश्वरी। बाहू महा-भुजा पातु, करांगुलीः सुरेश्वरी।।

पृष्ठतः पातु भीमास्या, कट्यां देवी दिगम्बरी। उदरं पातु मे नित्यं, महाविद्या महोदरी।।

उग्रतारा महादेवी, जंघोरु परि-रक्षतु। गुदं मुष्कं च मेढ्रं च, नाभिं च सुर-सुन्दरी।।

पदांगुलीः सदा पातु, भवानी त्रिदशेश्वरी। रक्त-मांसास्थि-मज्जादीन्, पातु देवी शवासना।।

महा-भयेषु घोरेषु, महा-भय-निवारिणी। पातु देवी महा-माया, कामाख्या पीठ-वासिनी।।

भस्माचल-गता दिव्य-सिंहासन-कृताश्रया। पातु श्रीकालिका देवी, सर्वोत्पातेषु सर्वदा।।

रक्षा-हीनं तु यत् स्थानं, कवचेनापि वर्जितम्। तत् सर्वं सर्वदा पातु, सर्व-रक्षण-कारिणी।।

फल-श्रुति:

इदं तु परमं गुह्यं, कवचं मुनि-सत्तम! कामाख्याया मयोक्तं ते, सर्व-रक्षा-करं परम्।।

अनेन कृत्वा रक्षां तु, निर्भयः साधको भवेत्। न तं स्पृशेद् भयं घोरं, मन्त्र-सिद्धि-विरोधकम्।।

जायते च मनः-सिद्धिर्निर्विघ्नेन महा-मते! इदं यो धारयेत् कण्ठे, बाही वा कवचं महत्।।

अव्याहताज्ञः स भवेत्, सर्व-विद्या-विशारदः। सर्वत्र लभते सौख्यं, मंगलं तु दिने-दिने।।

यः पठेत् प्रयतो भूत्वा, कवचं चेदमद्भुतम्। स देव्याः पदवीं याति, सत्यं सत्यं न संशयः।।

Kamakhya Devi Kavach/कामाख्या कवच विशेष:

कामाख्या कवच के साथ-साथ यदि गणेश कवच, कामाख्या कवच और लक्ष्मी नारायण कवच का पाठ किया जाए तो, कामाख्या कवच का बहुत लाभ मिलता है, यह कवच शीघ्र ही फल देने लग जाता है| यदि कोई साधक माँ कामाख्या की साधना करने की इच्छा रखते है तो माँ कामाख्या की तांत्रिक साधना पुस्तक में साधना के बारे में पढ़ सकते है| शास्त्रों में सिद्ध कामिया सिन्दूर बहुत ही शुभ और शुद्ध माना गया है| सभी शुभ कार्यो में आप सिद्ध कामिया सिन्दूर का उपयोग कर सकते है|