Aartiya, पूजा आरती

Puja Aartiya | पूजा आरती

Aartiya (पूजा आरती): Is also spelled is a Hindu religious ritual of worship, a part of Pooja, in which light from wicks soaked in ghee (purified butter) or camphor is offered to one or more deities. Aartiya can be simple to extravagant, but always involves flame or light. It is sometimes performs one to five times daily, and usually at the end of a Pooja (in southern India) or bhajan session (in northern India). Aartiya is performed during almost all Hindu ceremonies and occasions.

This involves the circulating of an ‘Aartiya Plate‘ or ‘Aartiya Lamps’ around a person or deity and is generally accompanied by the congregation singing songs in praise of that deva or person (many versions exist). In doing so, the plate or lamp is supposes to acquire the power of the deity (Aartiya). The priest circulates the plate or lamp to all those present. They cup their down-turned hands over the flame and then raise their palms to their forehead. Purification blessing, passed from the deva’s image to the flame, has now been passed to the devotee.

Aartiya Procedure:

Aartiya can be an expression of many things including love, benevolence, gratitude, prayers, or Read more ..

आरती(Aartiya) : पूजा आरती हिन्दू उपासना की एक प्रकार विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से इष्ट के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें घी, धुप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। कई बार इसके साथ संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है। मंदिरों में इसे प्रातः, सांय एवं रात्रि (शयन) में द्वार के बंद होने से पहले किया जाता है। प्राचीन काल में यह व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता था। तमिल भाषा में इसे दीप आराधनई कहते हैं।

सामान्यतः जब पूजा के अंत में आराध्य भगवान की पूजा आरती करते हैं। पूजा आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका अपना विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें सम्मिलित होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित करने चाहियें।

पूजा आरती विधान:

आरती करते समय भक्त के मन में ऐसी भावना होनी चाहिए, की मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि भक्त अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारती कहलाती है। पूजा आरती प्रायः दिन में एक से पांच बार की जाती है। इसे हर प्रकार के धार्मिक समारोह एवं त्यौहारों में पूजा के अंत में करते हैं। एक पात्र में शुद्ध घी लेकर उसमें विषम संख्या (जैसे 3, 5 या 7) में बत्तियां जलाकर Read more..