श्रीमद्भागवत गीता आरती | Shrimad Bhagwat Geeta Aarti
आरती अतिपावन पुराण की ।
धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥
महापुराण भागवत निर्मल । शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥
परमानन्द सुधा-रसमय कल । लीला-रति-रस रसनिधान की ॥
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
कलिमथ-मथनि त्रिताप-निवारिणि । जन्म-मृत्यु भव-भयहारिणी ॥
सेवत सतत सकल सुखकारिणि । सुमहौषधि हरि-चरित गान की ॥
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
विषय-विलास-विमोह विनाशिनि । विमल-विराग-विवेक विकासिनि ॥
भगवत्-तत्त्व-रहस्य-प्रकाशिनि । परम ज्योति परमात्मज्ञान की ॥
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
परमहंस-मुनि-मन उल्लासिनि । रसिक-हृदय-रस-रासविलासिनि ॥
भुक्ति-मुक्ति-रति-प्रेम सुदासिनि । कथा अकिंचन प्रिय सुजान की ॥
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
॥ इति श्रीमद्भागवत महापुराण की आरती ॥
Shrimad Bhagwat Geeta Aarti | श्रीमद्भागवत गीता आरती विशेषताऐ:
श्रीमद्भागवत गीता आरती को नियमित रूप से करने से हमारा मन शान्त रहता है।और इस आरती के साथ-साथ भागवत स्तुति का पाठ किया जाये तो, हमारे अंदर के सारे नकारात्मक प्रभाव समाप्त भी होने लगते हैं। कृष्ण चालीसा का पाठ करने से हमारे सोचने और समझने की शक्ति में बृद्धि होने लगती है। प्रतिदिन आरती करते समय सुदर्शन कवच धारण करे साथ ही कृष्णा माला से जाप करेकरने से सभी प्रकार की बुराइयों से दूरी खुद-ब-खुद बनने लगती है। और मनोवांछित कामना पूर्ण होने लगती है।