Durga Kavach, दुर्गा कवच

Durga Kavach/दुर्गा कवच

Durga Kavach (दुर्गा कवच): Durga Kavach is considered as a powerful Stotra (chant) to nullify negative vibes around you. It acts as armour in protecting one from any evil spirits. Durga Kavach was recited by Lord Brahma to sage Markandeya and consists 47 Sloka. Lord Brahma praises Goddess Parvati in nine different forms of Mother Divine. Lord Brahma solicits each one to recite Durga Kavach and seek blessings of the Devi.

Durga Kavach is a sacred collection of special Shlokas from the Markandeya Purana (one of the eighteen major Puranas) and is part of the Durga Saptashti. Whoever practices Durga Kavach gets blessings from Mother Durga; all the hindrances of his/her life are removed thereby granting the practitioner with overall success and prosperity in life.

The most basic advantage of chanting Durga Kavach is that it creates a protective shield for your body and soul so that you remain immune from the dark forces or evil spirits. The mother of the universe is not partial and therefore do not think that she provides protection to only those who are praising or taking her name. Durga Kavach or shield is active on a 24/7 around you but you recite the mantras in order to make yourself more receptive and active towards it.

She is the Shakti and in her different manifestations and forms, She oversees the functioning of our universe. She is supported by 8 Yoginis. Additionally, Durga is usually shown carrying a variety of weapons and accompanied by her vehicle, a tiger or a lion, representing her aggression and ferocity.

The Devi Mahatmya gives the insight that no one can escape from sorrows in life. Durga Kavach is essential to come to terms with the fact that human life is a mixture of joys and sorrows. Hymns like this empower the devotee to face sorrows by fortifying his mind. For example, a person who has to walk through a forest has a choice. If he walks barefoot he is bound to get hurt but by wearing footwear he can walk through comfortably. Durga Kavach gives an elaborate description of how every organ and part of the human body can be protected by invoking a particular Goddess.

Durga Kavach Benefits:

Who daily recites Durga Kavach of the Goddess, which is even difficult for devas to obtain, in dawn, noon and dusk with devotion would be able to realize the goddess in person. He would live for one hundred years without getting defeated in all the three worlds with no untimely death in his family. Durga Kavach destroy all the poxes.

All the effects artificial poisons with temporary and permanent effects would be destroyed. All the black magic done in this world and the bad spirits which travel on the earth and in the sky, which are made in water, which can be created and which hear the suggestions like Kulaja, Mala, Shakini and Sakini, the terrible spirits which travel in the ether, the ghosts which reside in the home, yakshas, gandarwahas, Rakshasas, Brahmarakshasas, Vetalas Koosmandas and Bhairavee will be destroyed by the sight of such a man.

Who has to recite Durga Kavach:

  • The persons suffering from various diseases, weaknesses and under fear must recite the Durga Kavach for instant effects.
  • For the regulations and rules of Durga Kavach please contact Astro Mantra.

दुर्गा कवच/Durga Kavach

संसार में जितने भी कवच है, उन सभी कवचों में “दुर्गा कवच” (Durga Kavach) समस्त प्रकार से सुरक्षा प्रदान करने वाला माना गया है, दुर्गा कवच (Durga Kavach) अत्यन्त ही दुर्लभ है, इसके कवच के पाठ करने से माँ भगवती स्वयं अपने अस्त्र-शस्त्रों से साधक के सभी अंगों की रक्षा करती है, उसके मार्ग की, उसके कुल की रक्षा कर उसे पूर्ण लक्ष्मी प्रदान करती है, ताकि साधक पूर्ण सुरक्षित रहे, भय रहित रहे, किसी भी विपत्तिपूर्ण स्तिथि में, संकट में, यह कवच (Durga Kavach) अमोघ सुरक्षा प्रदान करने वाला माना गया है, यदि आपको लगता है, की आपके घर पर या आपके उपर किसी ने कोई तांत्रिक प्रयोग किया है, या अचानक शत्रुओं की तरफ से संकट बन गया है, तो आपको अवश्य ही, लाल आसन पर, पूर्व दिशा की तरफ मुख करके इस कवच का पाठ अवश्य ही करे।

विनियोग:

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ॠषिः,अनुष्टुप् छन्दः, चामुन्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो  बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,श्रीजगदम्बाप्रातीर्थे सप्तश्तीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः

मार्कण्डेय उवाच:

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे  ब्रूहि  पितामह॥

ब्रम्हो उवाच:

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु    कवचं  पुण्यं तच्छृनुष्व महामुने॥

अथ दुर्गा कवच:

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।

तृतीयंचन्द्रघण्टेति    कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।

सप्तमं कालरात्रीति   महागौरीति  चाष्टमम्॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

नामानि        ब्रह्मणैव    महात्मना ॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।

विषमे दुर्गमे  चैव  भयार्ताः   शरणं  गताः ॥

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।

नापदं तस्य पश्यामि  शोकदुःख भयं न  हि॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।

येत्वां स्मरन्ति   देवेशि रक्षसे तन्न संशयः॥

प्रेतसंस्था तु चामुन्डा वाराही महिषासना।

ऐन्द्री गजासमारुढा    वैष्णवी   गरुडासना ॥

माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।

लक्ष्मीः पद्मासना देवी   पद्महस्ता  हरिप्रिया ॥

श्र्वेतरुपधरा देवी ईश्र्वरी वृषवाहना।

ब्राह्मी     हंससमारुढा    सर्वाभरणभूषिता ॥

इत्येता मतरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।

नानाभरणशोभाढ्या     नानारत्नोपशोभिताः॥

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।

शङ्खंचक्रंगदां शक्तिं   हलं च मुसलायुधम् ॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।

कुन्तायुधं त्रिशूलं  च  शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।

धरयन्त्यायुधानीत्थं देवानां   च  हिताय वै ॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।

महाबले    महोत्साहे     महाभ्यविनाशिनि॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।

प्राच्यां रक्षतुमामैन्द्री    आग्नेय्यामग्निदेवता॥

दक्षिणेऽवतु वाराही नैॠत्यां खद्‌गधारिणी।

प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्  वायाव्यां मृगावाहिनी॥

उदीच्यां पातु कौबेरी ऐशान्यां शूलधारिणी।

ऊर्ध्वं ब्रह्माणी  मे रक्षेदधस्ताद्  वैष्णवी तथा

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।

जयामे चाग्रतः पातु विजया   पातु  पृष्ठतः ॥

अजिता वामपार्श्वे तु द्क्षिणे चापराजिता।

शिखामुद्‌द्योति निरक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।

त्रिनेत्रा च   भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च  नासिके॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।

कपौलौ   कालिका  रक्षेत्कर्णमूले  तु शांकरी॥

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।

अधरे    चामृतकला  जिह्वायां च सरस्वती॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।

घण्टिकां चित्रघण्टा च  महामाया च  तालुके॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।

ग्रीवायां भद्रकाली     च   पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।

स्कन्धयो:खङ्गिलनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।

नखाञ्छूलेश्र्वरी   रक्षेत्कक्षौ   रक्षेत्कुलेश्र्वरी॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।

हृदये ललिता  देवी    उदरे    शूलधारिणी॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्र्वरी तथा।

पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥

कट्यां भगवती   रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।

जङेघ   महाबला     रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्टे तु तैजसी।

पादाङ्गुलीषु    श्री  रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्र्चैवोर्ध्वकेशिनी।

रोमकूपेषु  कौबेरी   त्वचं   वागीश्र्वरी तथा॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि    पार्वती।

अन्त्राणि   कालरात्रिश्र्च पित्तं च मुकुटेश्र्वरी॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।

ज्वालामुखी  नखज्वालामभेद्या   सर्वसंधिषु॥

शुक्रं ब्रम्हाणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्र्वरी तथा।

अहंकारं   मनो बुध्दिं   रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥

प्रणापानौ तथा व्याअनमुदानं च समानकम्।

वज्रहस्ता   च  मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।

सत्त्वं    रजस्तमश्र्चैव  रक्षेन्नारायणी सदा॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।

यशःकीर्तिंचलक्ष्मींच धनं  विद्यां च चक्रिणी॥

गोत्रामिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।

पुत्रान्    रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां  रक्षतुभैरवी॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।

राजद्वारे  महालक्ष्मीर्विजया   सर्वतः स्थिता॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।

तत्सर्वं रक्ष  मे  देवि   जयन्ती पापनाशिनी॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।

कवचेनावृतो नित्यं   यत्र    यत्रैव गच्छति॥

तत्र तत्रार्थलाभश्र्च विजयः सार्वकामिकः।

यं यं चिन्तयते कामं तं तं  प्राप्नोतिनिश्र्चितम्।

परमैश्र्वर्यमतुलं प्राप्स्यते      तले   पुमान्॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।

त्रैलोक्येतु  भवेत्पूज्यः  कवचेनावृतः  पुमान्॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।

यंपठेत्प्रायतो नित्यं त्रिसन्ध्यम श्रद्धयान्वितः॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वप्राजितः।

जीवेद्      वर्षशतं   साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फ़ोटकादयः।

स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भुतले।

भूचराः   खेचराश्र्चेव    जलजाश्र्चोपदेशिकाः॥

सहजाः कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।

अन्तरिक्षचरा  घोरा   डाकिन्यश्र्च महाबलाः॥

ग्रहभूतपिशाचाश्च्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।

ब्रम्हराक्षसवेतालाः   कूष्माण्डा    भैरवादयः॥

नश्यति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।

मानोन्नतिर्भवेद्   राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं    परम् ॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।

जपेत्सप्तशतीं  चण्डीं   कृत्वा तु कवचं पुरा॥

यावभ्दूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।

तावत्तिष्ठति मेदिन्यां   संततिः पुत्रापौत्रिकी॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।

प्राप्नोति  पुरुषो  नित्यं   महामायाप्रसादतः॥

लभते परम्म   रुपं  शिवेन   सह   मोदते॥

इति श्री दुर्गा कवच सम्पूर्णं

Durga kavach/दुर्गा कवच विशेष:

दुर्गा कवच के साथ-साथ यदि श्री दुर्गा यंत्र  की पूजा की जाए तो, दुर्गा कवच का बहुत लाभ मिलता है, दुर्गा पूजा  करने से मनोवांछित कामना पूर्ण होती है, यह पूजा शीघ्र ही फल देने लग जाती है, किन्तु यह पूजा करने से पहले गणेश कवच का पाठ करना शुभ माना गया है| यदि साधक देवी दुर्गा  की साधना करने की इच्छा रखते है, तो उन्हें दुर्गा मंत्र के अनुसार देवी दुर्गा की साधना करनी चाहियें। दुर्गा गुटिका को घर के मुख्य दरवाज़े पर बाधने से घर की सभी बुराइयों से रक्षा होती है|