Mahavidya Kavach, महाविद्या कवच

Mahavidya Kavach/महाविद्या कवच

Mahavidya Kavach (महाविद्या कवच): Mahavidya Kavach is the most powerful Kavach for wish fulfillment, spiritual upliftment and knowledge. In Tantra, worship of Devi-Shakti is referred to as a Vidya. The Divine Mother is worshipped as ten cosmic personalities, the Das Mahavidya. Here das means ten and Mahavidya“, comes from the root of Sanskrit words Maha and Vidya in which Maha means great and Vidya means education that results in understanding and the spread of knowledge, enlightening or astonishing disclosure, and nirvana.

In Tantra, worship of Devi-Shakti is referred to as a Vidya. Of the hundreds of tantrik practices, the worship of the ten major Devis is called the Dasa Mahavidya (Mahavidya Kavach). Dasa Mahavidya (Mahavidya Kavach) are the incarnations of Goddess Shakti covering the whole range of feminine divinity. Mahavidya (Mahavidya Kavach) or Extreme Knowledge is the divine incarnations that can provide super natural powers and ultimate knowledge to the Sadhak. They are Kali, Tara, Tripura Sundari (or Shodhashi-Sri Vidya), Bhuvaneshwari, Chinnamasta, Bhairavi, Dhumavati, Bagalamukhi, Matangi, and Kamala. Mahavidya Kavach is a very powerful Kavach and is famous among the Sadhak following Shakti. Mahavidya Kavach protects from every direction, ghosts, jinns, yakshas and any kind of negative energies.

Successful Sadhana of these Vidya gives several boons to the practitioner. The Tantrik-Yogi who has control over his senses and positively inclined uses the boons to guide people and for the benefit of mankind. The Mahavidya Kavach are considered Tantric in nature. The major forms of the goddess are described in the Todala Tantra are: –

Kali: The ultimate form of Brahman, “Devourer of Time”.

Tara: The Goddess as Guide and Protector, or Who Saves. Who offers the ultimate knowledge which gives salvation (also known as Neel Saraswati).

Shodhashi or Lalita Tripurasundari: The Goddess Who is “Beautiful in the Three Worlds”; the “Tantric Parvati” or the “Moksha Mukta”.

Bhuvaneshwari: The Goddess as World Mother, or whose body is the cosmos.

Bhairavi: The Fierce Goddess.

Chinnamasta: The self-decapitated Goddess.

Dhumavati: The Widow Goddess, or the Goddess of death.

Bagalamukhi: The Goddess who paralyzes enemies.

Matangi: the Prime Minister of Lalita; the “Tantric Saraswati”.

Kamala: The Lotus Goddess; the “Tantric Lakshmi”.

Who is to recite Mahavidya Kavach:

  • The persons who are becoming unsuccessful day by day and cannot meet their ends financially should recite Mahavidya Kavach.
  • For further guidelines please contact Astro Mantra.

महाविद्या कवच/Mahavidya Kavach

तन्त्र सुरक्षा के लिए दस महाविद्या कवच:

ब्रह्माण्ड ही समस्त क्रिया-कलापों को नियमित और नियंत्रित करने वाली शक्तियां ही महाविद्याओं (Mahavidya Kavach) के नाम से जानी जाती हैं। आसुरी एवं दुष्प्रभावी शक्तियां भी हैं जो इस सृष्टि में कभी भी संसार की सुव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर सकती हैं, और करती भी हैं। इन सभी निकृष्ट प्रवृत्तियों को निरस्त कर दैवी-शक्ति को स्थापित करती हैं ये महाविद्याएं (Mahavidya Kavach), जो मात्र सामान्य शक्ति नहीं है, निश्चित रूप से इन शक्तियों को आत्मसात करने के लिए साधक को आंतरिक और बाह्यरूप से अत्यन्त ही परिशुद्ध होना चाहिए।

महाविद्याओं (Mahavidya Kavach) की साधना करने से पूर्व विभिन्न साधनाओं एवं दीक्षाओं द्वारा अपने-आप को परिपक्व एवं दृढ़ बना लेना चाहिए, क्योंकि ये सभी उच्च शक्तियां हैं, उस स्तर तक पहुंचने के लिए साधक में आत्मविश्वास तथा आत्म-निर्भयता होनी आवश्यक है, फिर तो किसी एक महाविद्या (Mahavidya Kavach) का भी अनुग्रह प्राप्त होने पर वह साधक अनन्त शक्तियों का स्वामी स्वत: बन जाता है, इतिहास पुरुष बन ही जाता है। भौतिक एवं आद्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में उसका प्रभावशाली व्यक्तित्व होता ही है, समस्त ऐश्वर्य एवं पद प्रतिष्ठा उसके हस्तगत होती है, दुर्दान्त एवं प्रबलतम शत्रु भी उससे आंख नहीं मिला सकता।

महाविद्याओं की सिद्धि किये बिना साधक को पूर्णता प्राप्ति सहज ही संभव नहीं हो पाती। सिद्धाश्रम प्राप्ति के लिए भी महाविद्याओं (Mahavidya Kavach) की साधना अपेक्षित होती है, अन्यथा उसमें प्रवेश संभव नहीं हो पाता। स्वामी विवेकान्द का ओजस्वी व्यक्तित्व भी तो महाकाली साधना के बाद ही निर्मित हुआ। परमहंस स्वामी रामकृष्ण ने विवेकान्द को महाकाली का कवच प्रदान किया था, जिसके कारण ही वे विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने में सक्षम हुए।

दस महाविद्याओं का प्रादुर्भाव:

दस महाविद्याओं (Mahavidya Kavach) का सम्बन्ध सती से है, महाभागवत में स्पष्ट कथा आती है, कि दक्ष ने शिव यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। सती ने अपने पिता के इस यज्ञ में भाग की स्वीकृति मांगी, तो शिव ने अनमने भाव से स्वीकृति दे दी। वहां जाकर सती ने देखा कि सभी देवताओं के आसन यज्ञ स्थल में अपने-अपने स्थान पर हैं, पर उनके पति भगवान शंकर का कोई स्थान नहीं है, तो वह अत्यन्त क्रोधित हो गईं।

आंखे लाल सुर्ख हो गईं, क्रोध से सारा शरीर दहकने लगा, सिर के केश चारों तरफ बिखर गए और वे कालाग्नि के रूप में दिखाई देने लगीं, गले में मुण्ड माला पहने हुए थीं भयानक जीभ बाहर निकली हुई थी और वह बार-बार विकट हुंकार कर रही थीं।

देवी का यह रूप देखकर देवता तो क्या भगवान शिव भी विचलित हो गए, उस समय उनके शरीर का तेज करोड़ो सूर्यों के समान तेजस्वी था और वे बार-बार अट्टहास कर रही थीं।

देवी के इस विकराल भयानक रूप को देखकर शिवजी भयातुर होकर जाने लगे, मगर रूद्र को दसों दिशाओं में रोकने के लिए भगवती सती ने अपनी अंगभूत दस देवियां प्रकट कीं, जो कि दस महाविद्या (Mahavidya Kavach) कहलायीं जिनके नाम हैं-काली, तारा, भुवनेश्वरी, कमला, धूमावती, बगलामुखी, त्रिपुर सुन्दरी, छिन्नमस्ता, षोडशी और मातंगी।

जब शिव नियंत्रण में आए तो भगवती देवी ने कहा- जो साधक मेरी इन दस देवियों की साधना करेगा वह निश्चय ही सभी विघ्नों से दूर, सुखी, सम्पन्न एवं यशस्वी होगा, उसके जीवन में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आएगी, तथा वह समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हुआ पूर्णत्व प्राप्त करेगा।

इन महाविद्या (Mahavidya Kavach) साधनाओं के माध्यम से एक ओर जहां धन, लाभ, कीर्ति, प्रसिद्धि, विजय, यश, समृद्धि, पौरुष व बल प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर ज्ञानश्चेतना, प्राणश्चेतना, कुण्डलिनी जागरण, सम्मोहन, समाधि, ब्रह्मज्ञान, मोक्ष और पूर्णता भी प्राप्त होती है।

दस महाविद्या कवच का महत्व:

अपने आप को विपरीत परिस्थिति में अथवा शत्रुओं से सुरक्षित करने का निश्चित साधन, जिससे कोई भी शत्रु हमें हानि न पहुंचा पाये। साधना काल में विघ्न के रूप में ऐसी स्थितियां आती हैं, उसके लिए या साधना की निर्विघ्नता के लिए कवच पाठ करना ही चाहिए। महाविद्या कवच (Mahavidya Kavach) तो अपने आप में अद्वितीय एवं उत्कृष्ट है, सर्वत्र विजय प्राप्ति तथा सुरक्षा के लिए इसका पाठ फलप्रद है।

कवच (Mahavidya Kavach) पाठ के लिए स्नानदि से परिशुद्ध होकर पूजा स्थान में पीले आसन पर बैठें। सामने पूज्य गुरुदेव का आकर्षक चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप की कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो।

सामने अगरबत्ती जला लें, दीपक हो सके तो घी या तेल किसी का भी जला सकते है। सम्बन्धित महाविद्या (Mahavidya Kavach) के पूजन चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप कि कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो।

सामने अगरबत्ती जला लें, सम्बन्धित महाविद्या (Mahavidya Kavach) के पूजन और मंत्र जप के पहले और बाद में कवच का एक पाठ करना चाहिए।

दस महाविद्या कवच

श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम्।
आद्दाया महाविद्या: सर्वाभीष्ट फलप्रदम् ।।1।।
कवचस्य ऋषिर्देवि। सदाशिव इतिरित:,
छन्दोंऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता।
धर्मार्थ काममोक्षाणां विनियोगस्य साधने।।2।।
ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि।
रमा बीजं सदा पातु नाभौ गुह् च पादये:।।3।।
ललाटे सुन्दरी पातु उग्रा मां कण्ठ देशत:।
भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी।।4।।
पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा।
उत्तरे वैष्णवी पातु चन्द्राणी पश्चिमेऽवतु।।5।।
महेश्वरी च आग्नेय्यां नैऋत्ये कमला तथा।
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा ईशकेऽवतु।।6।।
इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत्।
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।।7।।

कवच का भावार्थ:

हे देवि। मैं महाविद्या कवच का व्याख्यान कर रहा हूं। जो सर्वसिद्धिदायक तथा सभी इच्छित फल को प्रदान करने वाला है। इस कवच का पाठ निश्चित सिद्धिदायक है, यह महाविद्या कवच अति उत्कृष्ट एवं प्रचण्ड शक्ति युक्त है।’’ ।।1।।

कवच पाठ से पूर्व दाहिने हाथ में जल लेकर कवच से सम्बन्धित ऋषि, देवता आदि का संकीर्तन आवश्यक होता है, यह प्रतिज्ञा वाक्य कहलाता है। इस महाविद्या कवच के सदाशिव ऋषि हैं, अनुष्टुप छन्द है, महाविद्या देवता है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्ति इस कवच पाठ से प्राप्तव्य विषय है।।2।।

‘ऐं’ बीज अर्थात् भगवती मातंगी मेरे सिर की, काम बीज ‘क्लीं, अर्थात्, भगवती काली हृदय की, तथा रमा बीज ‘श्रीं’ अर्थात् भगवती महालक्ष्मी मेरी नाभि, गुह्य प्रदेश और पैरों की रक्षा करें।।3।।

त्रिपुर सुन्दरी मेरी मस्तक की उग्रा छिन्नमस्ता मेरे कण्ठ की, भगवती काली समस्त शरीर की तथा त्रिपुर भैरवी गुह्य प्रदेश की रक्षा करें ।।4।।

पूर्व दिशा में वाराही, दक्षिण में ब्रह्माणी उत्तर में वैष्णवी पश्चिम दिशा में चन्द्राणी, पूर्व और दक्षिण का मध्य भाग अग्नि कोण होता है उसमें भगवती माहेश्वरी मेरी रक्षा करें।

दक्षिण और पश्चिम का मध्य नैऋत्य है, उसमें देवी कमला, पश्चिम और उत्तर का मध्य भाग वायव्य होता है उसमें कुमारी, उत्तर और पूर्व का मध्य ईशान दिशा है, उसमें महाशक्ति चामुण्डा मेरी रक्षा करें। इस कवच को बिना जाने जो मनुष्य महाविद्या मंत्र जपता है, उसे सहस्त्रों वर्षों में भी फल प्राप्त नहीं होता।।5,6,7।।

कवच सम्पूर्णं

Mahavidya kavach/महाविद्या कवच विशेष:

महाविद्या कवच के साथ-साथ यदि बगलामुखी कवच, लक्ष्मी नारायण कवच  का पाठ किया जाए तो, महाविद्या कवच का बहुत लाभ मिलता है, मनोवांछित कामना पूर्ण होती है, यह कवच शीघ्र ही फल देने लग जाता है, यदि साधक महाविद्या साधना करने की इच्छा रखते है, तो उन्हें दस महाविद्या सिद्धि पुस्तक के अनुसार महाविद्या साधना करनी चाहियें। दस महाविद्या गुटिका को घर के मुख्य द्वार पर बाधने से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर होती है| अगर किसी व्यक्ति पर कोई तांत्रिक प्रियोग हुआ हो तो उसे दस मुखी रुद्राक्ष को गले में धारण करना चाहिए|