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Rudrashtadhyayi Path 6 | रुद्राष्टाध्यायी छठा पाठ

Rudrashtadhyayi Path 6
चमत्कारी रुद्राष्टाध्यायी हिन्दी छटा पाठ।

समस्त रोग, भय, कष्ट, पीड़ा, दुःख, दरिद्र, अभाव नष्ट करने के लिए अवश्य सुनें रुद्राष्टाध्यायी छटा पाठ (रुद्री पाठ)।

Rudrashtadhyayi Path 6
रुद्राष्टाध्यायी छठा पाठ

षष्ठोध्यायः

वयं-सोमव्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः ॥ प्रजावन्तः सचेमहि ॥ १॥

एष ते रुद्रभागः सहस्वस्राऽम्बिकया तं जुषस्व स्वाहैष ते रुद्रभाग आखुस्ते पशुः ॥ २॥

अव रुद्रमदीमहि अव देवं त्र्यम्बकम् ॥

यथा नो वस्यसस्करद्यथा नः श्रेयसस्करद्यथा नो व्यवसायात् ॥ ३॥

भेषजमसि भेषजं गवेऽश्वाय पुरुषाय भेषजम् । सुखं मेषाय मेष्यै ॥ ४॥

त्र्यम्बकं यजामहे । सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् । उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः ॥ ५॥

एतत्ते रुद्रावसं तेन परो यमूजवतोऽतीहि ॥

अवतत धन्वा पिनाकवासस्कृत्तिवासा अहिंसन् नः शिवोऽतीहि ॥ ६॥

त्र्यायुषं जमदग्ने कश्यपस्य त्र्यायुषम् ॥ यद्देवेषु त्र्यायुषं तन्नोऽस्तु त्र्यायुषम् ॥ ७॥

शिवो नामाऽसि स्वधितिस्ते पिता नमस्तेऽस्तु मा मा हिंसीः ॥

निवर्तयाम्यामुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥ ८॥

Rudrashtadhyayi Path 6 Hindi Meaning 
भावार्थः शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी छठा पाठ

हे सोमदेव ! पुत्र – पौत्रादि से संपन्न हम यजमान यज्ञ और व्रतों में आपके स्वरुप में चित्त लगाकर सेवनीय वस्तुओं का सेवन करें। हे रुद्र ! हमारे द्वारा दिया हुआ यह पुरोडाश आपका भाग है, आप अपनी भगिनी अम्बिका के साथ इसका सेवन कीजिए. यह प्रदत्त हवि सुहुत रहे। हमारे द्वारा अवकीर्ण किया गया यह पुरोडाश आपका भाग है, आपके द्वारा इसका सेवन किया जाए। हमने इस मूषकसंज्ञक पशु को आपके लिए अर्पित किया है। चित्त में रुद्र और त्र्यम्बक का ध्यान करके (अथवा अन्य देवताओं से पृथक करकके) हम रुद्र को अन्न खिलाते हैं। वे रुद्र हमें निवसनशील और ज्ञाति में श्रेष्ठ कर दें तथा वे हमें समस्त कार्यों में शीघ्र निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करें, इसके लिए हम उनका जप करते हैं।

हे रुद्र ! आप औषधि के तुल्य समस्त उपद्रवों के निवारक हैं, अत: हमारे गाय, अश्व और भृत्य आदि को सर्वव्याधिनिवारक औषधि दीजिए और हमारे मेष तथा मेषी को सुख प्रदान कीजिए। दिव्य गन्ध गन्ध से युक्त, मृत्युरहित, धन-धान्यवर्धक, त्रिनेत्र रुद्र की हम पूजा करते हैं। वे रुद्र हमें अपमृत्यु और संसाररूप मृत्यु से मुक्त करें। जिस प्रकार ककड़ी का फल अत्यधिक पक जाने पर अपने वृन्त (डंठल) से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार हम भी मृत्यु से छूट जाएँ, किन्तु अभ्युदय और नि:श्रेयसरूप अमृत से हमारा संबंध न छूटने पाए। (अग्रिम वाक्य कुमारिकाओं का है) पति की प्राप्ति कराने वाले, सुगन्ध विशिष्ट त्रिनेर शिव की हम पूजा करती है। ककड़ी का फल परिपक्व होने पर जैसे अपने डंठल से छूट जाता है, उसी प्रकार हम कुमारियाँ माता, पिता, भाई आदि बन्धुजनों से तथा उस कुल से छूट जाएँ, किंतु त्र्यम्बक के प्रसाद से हम अपने पति से न छूटें अर्थात पिता का गोत्र तथा घर छोड़कर पति के गोत्र तथा घर में सर्वदा रहें।

हे रुद्र ! आपका यह “अवस” (अवस का अर्थ है – प्रवास में किसी सरोवर के समीप विश्राम करने पर भक्षणयोग्य ओदन विशेष अर्थात खाने की कोई वस्तु) संज्ञक हवि:शेष भोज्य है, उसके सहित आप अपने धनुष की प्रत्यंचा को हटाकर मूजवान पर्वत के उस पार जाइए। (मूजवान पर्वत पर रुद्र निवास करते हैं) प्रवास करते समय आप अपने “पिनाक” नामक धनुष को सब ओर से आच्छादित कर लें, जिससे कोई भी प्राणी आपके धनुष को देखकर भयभीत न हो। हे रुद्र ! आप चर्माम्बर धारण करके हिंसा न करते हुए हमारी पूजा से संतुष्ट होकर मूजवान पर्वत को लाँघ जाइए।

जमदग्नि ऋषि की बाल्य-यौवन-वृद्धावस्था के जो उत्तम चरित्र हैं, कश्यप प्रजापति की तीनों अवस्थाओं के जो उत्तम चरित्र हैं तथा देवगणों में भी उनकी तीनों अवस्थाओं के जो प्रशंसनीय चरित्र विद्यमन हैं, तीनों अवस्थाओं से संबंधित वैसा ही चरित्र हम यजमानों का भी हो. हे क्षुर ! आपका नाम “शान्त” है. वज्र आपके पिता हैं, मैं आपके लिए नमस्कार करता हूँ। आप मेरी हिंसा मत कीजिए। हे यजमान ! बहुत दिनों तक जीवित रहने के लिए, अन्न-भक्षण करने के लिए, संतति के लिए, द्रव्य-वृद्धि के लिए, योग्य संतान उत्पन्न होने के लिए तथा उत्तम सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए मैं आपका मुण्डन करता हूँ।

इति रुद्राष्टाध्यायी षष्ठोऽध्यायः

Rudrashtadhyayi Path 6 Hindi

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