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Rudrashtadhyayi Path 3 | शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ

Rudrashtadhyayi Path 3 | शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ
चमत्कारी रुद्राष्टाध्यायी हिन्दी तृतीय पाठ।

समस्त भय, रोग, पीड़ा, कष्ट से मुक्ति और अमोघ रक्षा के लिए अवश्य सुनें, शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ(रुद्री पाठ)।

Rudrashtadhyayi Path 3
रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ

मङ्गलाचरणम्

वन्दे सिद्धिप्रदं देवं गणेशं प्रियपालकम् ।
विश्वगर्भं च विघ्नेशं अनादिं मङ्गलं विभूम् ॥

अथ ध्यानम् –

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारु चन्द्रवतंसम् ।
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशु मृगवरं भीतिहस्तं प्रसन्नम् ॥
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृतिं वसानम् ।
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

Rudrashtadhyayi Path 3
शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ

Rudrashtadhyayi Path 3 | तृतीय पाठ श्लोक

आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीनाम् ॥

सङ्क्रन्दनोऽ निमिष एकवीरः शतसेना अजयत्साकमिन्द्रः ॥ १॥

सङ्क्रन्दनेनानिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्च्यवनेन धृष्णुना ।

तदिन्द्रेण जयत तत्सहध्वं युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा ॥ २॥

स इषुहस्तैः सनिषङ्गिभिर्वशी संस्रष्टा स युध इन्द्रोगणेन ॥

संसृष्टजित्सौमपा बाहुशर्द्ध्युग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥ ३॥

बृहस्पते॒ परिदीया रथेन रक्षोहाऽमित्रान् अपबाधमानः ॥

प्रभञ्जन्त्सेनाः प्रमृणो युधाजयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम् ॥ ४॥

बलविज्ञायस्स्थविर प्रवीरः सहस्वान्वाजी सहमान उग्रः ॥

अभिवीरोऽभिसत्त्वा सहोजा जैत्रमिन्द्ररथमात्तिष्ठ गोवित् ॥ ५॥

गोत्रभिदं गोविदं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा ॥

इमं सजाता अनुवीरयध्वमिन्द्रं सखायोऽनुसंरभध्वम् ॥ ६॥

अभिगोत्राणि सहसाऽभिगाहमानोऽदयोवीरः शतमन्युरिन्द्रः ।

दुश्च्यवनः पृतनाषाडयुध्योऽस्माकं सेनाः प्रावतु युत्सु ॥ ७॥

इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणायज्ञ पुर एतु सोमः ॥

देवसेनानाममिभञ्जतीनां मरुतो यन्त्वग्रम् ॥ ८॥

इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य॒ राज्ञ आदित्यानां मरुतां शर्ध उग्रम् ॥

महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात् ॥ ९॥

उद्धर्षय मघवन्नायुधान्यत्सत्त्वनां मामकानां मनांसि ।

उद्र्वृत्रहन् वाजिनां वाजिनान्युद्रथानां जयतामुद्यन्तु घोषाः ॥ १०॥

अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ताः जयन्तु ॥

अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्व॒स्माँ उ देवा अवताहवेषु ॥ ११॥

अमीषां चित्तं प्रतिलोभयन्ती गृहाणाङ्गान्यप्वपरेहि ॥

अभिप्रेहि निर्दह हृत्सु शोकैरन्धेनामित्रास्तमसा सचन्ताम् ॥ १२॥

अवसृष्टा परापतशरव्ये ब्रह्मसंशिते ।

गच्छामित्रान् प्रपद्यस्व मामीषां कञ्चनोच्छिषः ॥ १३॥

प्रेत जयत नर इन्द्रो वः शर्म यच्छन्तु ॥

उग्रा वः सन्तु बाहवोऽनाधृष्याः व यथा असथ ॥ १४॥

असौ या सेना मरुतः परेषाम्मभ्यैति न ओजसा स्पर्धमाना ॥

तां गूहत तमसाऽपव्रतेन यथाऽमी अन्योऽन्यं न जानन् ॥ १५॥

यत्र बाणाः सम्पतन्ति कुमारा विशिखा इव ।

तन्न इन्द्रो बृहस्प्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु ॥ १६॥

मर्माणि ते वर्मणा च्छादयामि सोमस्त्वा राजाऽमृतेनानुवस्ताम् ॥

उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तं त्वा देवा अनुमदन्तु ॥ १७॥

Rudrashtadhyayi Path 3 Hindi Meaning 
भावार्थः शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ

शीघ्रगामी वज्र के समान तीक्ष्ण, वर्षा के स्वभाव की उपमा वाले, भयकारी, शत्रुओं के अतिशय घातक, मनुष्यों के क्षोभ के हेतु, बार-बार गर्जन करने वाले, देवता होने से पलक ना झपकाने वाले, अत्यन्त सावधान तथा अद्वितीय वीर इन्द्र एक साथ ही शत्रुओं की सैकड़ों सेनाओं को जीत लेते हैं। हे युद्ध करने वाले मनुष्यों ! प्रगल्भ तथा भय रहित शब्द करने वाले, अनेक युद्धों को जीतने वाले, युद्धरत, एकचित्त होकर हाथ में बाण धारण करने वाले, जयशील तथा स्वयं अजेय और कामनाओं की वर्षा करने वाले इन्द्र के प्रभाव से उस शत्रु सेना को जीतो और उसे अपने वश में करके विनष्ट कर दो।

वे जितेन्द्रिय अथवा शत्रुओं को अधीन करने वाले, हाथ में बाण लिए हुए धनुर्धारियों को युद्ध के लिए ललकारने वाले इन्द्र शत्रु समूहों को एक साथ युद्ध में जीत सकते हैं। यजमानों के यज्ञ में सोमपान करने वाले, बाहुबली तथा उत्कृष्ट धनुष वाले वे इन्द्र अपने धनुष से छोड़े हुए बाणों से शत्रुओं का नाश कर देते हैं। वे इन्द्र हमारी रक्षा करें। हे बृहस्पते ! आप राक्षसों का नाश करने वाले होवें, रथ के द्वारा सब ओत विचरण करें, शत्रुओं को पीड़ित करते हुए और उनकी सेनाओं को अतिशय हानि पहुँचाते हुए युद्ध में हिंसाकारियों को जीतकर हमारे रथों की रक्षा करें।

हे इन्द्र ! आप दूसरों का बल जानने वाले, अत्यन्त पुरातन, अतिशय शूर, महाबलिष्ठ, अन्नवान, युद्ध में क्रूर, चारों तरफ से वीर योद्धाओं से युक्त, सभी ओर से परिचारकों से आवृत, बल से ही उत्पन्न, स्तुति को जानने वाले तथा शत्रुओं का तिरस्कार करने वाले हैं, आप अपने जयशील रथ पर आरोहण करें। हे समान जन्म वाले देवताओं ! असुरकुल के नाशक, वेदवाणी के ज्ञाता, हाथ में वज्र धारण करने वाले, संग्राम को जीतने वाले, बल से शत्रुओं का संहार करने वाले इस इन्द्र को पराक्रम दिखाने के लिए उत्साह दिलाइये और इसको उत्साहित करके आप लोग स्वयं भी उत्साह से भर जाइये।

शत्रुओं के प्रति दयाहीन, पराक्रम संपन्न, अनेक प्रकार से क्रोधयुक्त अथवा सैकड़ों यज्ञ करने वाले, दूसरों से विनष्ट न होने योग्य, शत्रु सेना का संहार करने वाले तथा किसी के द्वारा प्रहरित न हो सकने वाले इन्द्र संग्रामों में असुर कुलों का एक साथ नाश करते हुए हमारी सेना की रक्षा करें। बृहस्पति तथा इन्द्र सभी प्रकार की शत्रु-सेनाओं का मर्दन करने वाली विजयशील देवसेनाओं के नायक हैं। यज्ञपुरुष विष्णु, सोम और दक्षिणा इनके आगे-आगे चलें. सभी मरुद्गण भी सेना के आगे-आगे चलें।

महानुभाव, सारे लोकों का नाश करने की सामर्थ्य वाले तथा विजय पाने वाले देवताओं, बारह आदित्यों, मरुद्गणों, कामना की वर्षा करने वाले इन्द्र और राजा वरुण की सभा से जय-जयकार का शब्द उठ रहा है। हे इन्द्र ! आप अपने सह्स्त्रों को भली प्रकार सुसज्जित कीजिए, मेरे वीर सैनिकों के मन को हर्षित कीजिए। हे वृत्रनाशक इन्द्र ! अपने घोड़ों की गति को तेज कीजिए, विजयशील रथों से जयघोष का उच्चारण हो।

शत्रु की पताकाओं के मिलने पर इन्द्र हमारी रक्षा करें, हमारे बाण शत्रुओं को नष्ट कर उन पर विजय प्राप्त करें और हमारे वीर सैनिक शत्रुओं के सैनिकों से श्रेष्ठता प्राप्त करें। हे देवगण ! आप लोग संग्रामों में हमारी रक्षा कीजिए। हे शत्रुओं के प्राणों को कष्ट देने वाली व्याधि ! इन वैरियों के चित्त को मोहित करती हुई इनके सिर आदि अंगों को ग्रहण करो, तत्पश्चात दूर चली जाओ और पुन: उनके पास जाकर उनके हृदयों को शोक से दग्ध कर दो। हमारे शत्रु घने अन्धकार से आच्छन्न हो जाएँ। वेद-मन्त्रों से तीक्ष्ण किये हुए हे बाणरूप ब्रह्मास्त्र ! मेरे द्वारा प्रक्षित किये गये तुम शत्रु सेना पर गिरो, शत्रु के पास पहुँचो और उनके शरीरों में प्रवेश करो। इनमें से किसी को भी जीवित न छोड़ो।

हे हमारे वीर पुरुषों ! शत्रु की सेना पर शीघ्र आक्रमण करो और उन पर विजय पाओ। इन्द्र तुम लोगों का कल्याण करे, तुम्हारी भुजाएँ शस्त्र उठाने में समर्थ न हों, जिससे किसी भी प्रकार तुम लोग शत्रुओं से पराजय का तिरस्कार प्राप्त न करो। हे मरुद्गण ! जो यह शत्रुओं की सेना अपने बल पर हमसे स्पर्धा करती हुई हमारे सामने आ रही है, उसको अकर्मण्यता के अन्धकार में डुबो दो, जिससे कि उस शत्रु सेना के सैनिक एक-दूसरे को न पहचान पाएँ और परस्पर शस्त्र चलाकर नष्ट हो जाएँ।

जिस युद्ध में शत्रुओं के चलाए हुए बाण फैली हुई शिखा वाले बालकों की तरह इधर-उधर गिरते हैं, उस युद्ध में इन्द्र, बृहस्पति और देवमाता अदिति हमें विजय दिलाएँ. ये सब देवता सर्वदा हमारा कल्याण करें। हे यजमान ! मैं तुम्हारे मर्म स्थानों को कवच से ढकता हूँ, ब्राह्मणों के राजा सोम तुमको मृत्यु के मुख से बचाने वाले कवच से आच्छादित करें, वरुण तुम्हारे कवच को उत्कृष्ट से भी उत्कृष्ट बनाएँ और अन्य सभी देवता विजय की ओर अग्रसर हुए तुम्हारा उत्साहवर्धन करें।

Rudrashtadhyayi Path 3
इति शुक्लयजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी तृतीय पाठ 

Rudrashtadhyayi Path 3 Hindi

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