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Mangalvar Vrat Ki Vidhi (मंगलवार व्रत)

Tuesday Fast Story, Mangalvar Vrat Ki Vidhi, मंगलवार व्रत की विधि

Mangalvar Vrat Ki Vidhi (मंगलवार व्रत की विधि): People who take vows for Tuesday until 21 weeks of fasting, all the adverse effects due to Mars go away.

Mangalvar Vrat Ki Puja Vidhi:

Tuesday/Mangalvar Vrat Ki Vidhi, red sandalwood, red flower, wheat, molasses, mixed dish are prepared for lent. People who take vows should worship with red hibiscus flower, red sandalwood and wearing red clothing on Tuesdays for 21 weeks. The diet should be taken once a day. In this context it is a common narrative:

Legend of Mangalvar Vrat:

There was an old woman. She used keep vow on every Tuesday. His son’s name was Mangalia. On Tuesday neither she used to clean the floor with soil nor did she use to crush the soil. One day Mangaldev(Mangalvar Vrat Ki Vidhi) came to her in disguise of a monk and called on her. The old lady answered that she had a son. He went to play in the village. I am involved in household chores. So whatever you have to say, say quickly. Mangaldev in disguise of a monk chanted, “I am too much hungry.

Food has to be prepared. So please clean the floor with soil. It will be a virtue for you.” Hearing the same, the Old lady quoted, “Today I am on fast of Tuesday. So I cannot clean the ground but I can sprinkle water around the place for kitchen. At the same location, you can prepare your food.” Then old lady quoted again, “Besides cleaning the floor with soil whatever you say I ‘m ready to serve you.”

The sage said, “Think before what you say. Whatever I will say, you have to follow.” “Yes, yes, lord. I told you with after thinking only that whatever you will say, I’ll be happy to do it.” The monk said, “Give your guy a call and let him lay down inverted before me. I will make a meal on his back.” Listening to monk the old lady was stunned. Seeing him in this situation the monk said, “Lady. Call your son. Which consideration you have fallen into now?” Hearing so the old lady started calling her son ‘ Mangalia ‘ Mangalia’. (Mangalvar Vrat Ki Vidhi)

A little later the son came hearing the mother’s voice. The old woman said, “Go, you are being called by Baba.” Mangalia went to the sage and asked, “What, my lord?” Sadhu Maharaj said, “Go call your mother bring her here.” So when the old woman came the said,” You put your son lay down on face and put the fire on his back.” The old woman recalling Mangaldev(Mangalvar Vrat Ki Vidhi) from the core of heart did so as instructed by the monk.    Then the lady told the monk, “Whatever you have to do now please carry on. I’ll go and see the other work.  “Okay.” Saying the sage lit the fireplace and the food prepared on it.

When the food was prepared, the monk called the old and said, “Devi, call your son to have the offerings.” Old woman said, “Your Majesty. How is it surprising? On the back of my son you lit the fireplace, and you are calling him for offerings now. Is it possible that he would still be alive? Please do not remind me. You please proceed towards the destination.” Sadhu Maharaj again urged to call her son. Forced by the monk she called, “Mangalia.” Mangalia immediately came running from the side(Mangalvar Vrat Ki Vidhi).

The monk then gave the offerings to Mangalia and told the old woman, “Devi. You have successful lent of Tuesday. You have compassion in your heart and faith and loyalty towards you favored. So you cannot be harmed by anybody”.

Mangalvar Vrat Vidhan

मंगलवार व्रत की विधि (Mangalvar Vrat Ki Vidhi)

यह व्रत 21 सप्ताह तक करने से व्रत करने वाले का (व्रती) का मंगलदोष दूर हो जाता है।

मंगलवार का व्रत करने की विधि:

मंगलवार को लाल चन्दन, लाल फूल, गेहूँ, गुड़, मिश्रित पकवान प्रिय हैं। व्रती को गुडहल के लाल फूल, लाल चन्दन और लाल वस्त्र से 21 सप्ताह तक मंगल की पूजा करनी चाहिए। इस दिन एक बार आहार ग्रहण करना चाहिए। इसके सन्दर्भ में यह कथा प्रचलित है:

पौराणिक कथा:

एक वृद्धा थी। वह हर मंगल को व्रत रखा करती थी। उसके बेटे का नाम मंगलिया था। मंगलवार के दिन वह वृद्धा न तो घर को लीपती थी और न मिट्टी कूटती थी। एक दिन उसके यहाँ मंगलदेव साधु का भेस बनाकर आए और आवाज़ लगाई। वृद्धा ने आकर उत्तर दिया कि हमारा एक बालक है। वह गाँव में खेलने चला गया है। मैं घर-गृहस्थी के काम में उलझी हुई हूँ। क्या कहना है जल्दी कहिए।

मंगलदेव साधु के भेस में बोले, “मुझे बहुत ज़ोर की भूख लगी हुई है। भोजन तैयार करना है। इसके लिए तुम थोड़ी-सी जमीन की लिपाई कर दो तो तुम्हारा पुण्य होगा।” इतना सुनकर वृद्धा बोली, ”आज तो मैं मंगलव्रती हूँ। इस कारण ज़मीन की लीपापोती तो कर नहीं सकती, कहिए पानी छिड़क कर चौका लगा दूं। उसी स्थान पर आप रसोई तैयार कर लें।” मंगलदेव साधु ने कहा मैं तो गोबर से लिपे हुए चौके में ही रसोई बनाता हूँ। (मंगलवार व्रत की विधि)

वृद्धा फिर बोली, “ज़मीन लीपने-पोतने के सिवाय और जिस तरह से कहिए मैं आपकी सेवा करने के लिए तैयार हूँ।”

साधु-महाराज बोले, “सोच-समझ कर कहो। जो कुछ भी मैं कहूँगा वह तुम्हें करना होगा।”

“हाँ,हाँ, महाराज। मैंने सोच-समझ कर ही कहा है कि जो कुछ भी आप कहेंगे उसे मैं सहर्ष करूंगी।”

तब साधु महाराज बोले, “अपने लड़के को बुलाकर औंधा लिटा दे। उसी के पीठ पर मै भोजन बनाऊंगा।”

साधु महाराज की बात सुनकर वृद्धा स्तब्ध रह गई। उसे इस स्थिति में देख कर साधु ने फिर कहा, “माई। बुला ना अपने बेटे को। अब किस सोच-विचार में पड़ गई है।” इतना सुनकर वृद्धा ‘मंगलिया’ ‘मंगलिया’ करके पुकारने लग गई। कुछ देर बाद माँ की आवाज़ सुनकर लड़का आ गया। वृद्धा ने कहा, “जा, तुझे बाबा बुला रहे हैं।” मंगलिया ने साधु महाराज के पास जाकर पूछा, “क्या है, महाराज?” साधु महाराज बोले, “जा अपनी माँ को बुला ला।” (मंगलवार व्रत की विधि)

वृद्धा आई तो साधु महाराज ने कहा, “तुम्हीं अपने बेटे को औंधा लिटा दो और उसकी पीठ पर अंगीठी लगा दो।” वृद्धा ने मन ही मन में मंगल देवता का स्मरण करते हुए वैसा ही किया। इसके बाद साधु महाराज से बोली, “अब आपको जो कुछ करना हो कीजिए, मैं जाकर काम देखती हूँ। “ठीक है।” कहकर साधु महाराज ने अंगीठी सुलगाई और उस पर अपने लिए भोजन तैयार किया। जब भोजन तैयार हो चूका तो उन्होंने वृद्धा को बुलाकर कहा, “माई, अपने बेटे को बुला ला वह भी भोग प्रसाद ले जाए।”

वृद्धा ने कहा, “महाराज। यह कैसे आश्चर्य की बात है? मेरे बेटे की पीठ पर आपने अंगीठी जलाई, उसी को अब प्रसाद के लिए बुला रहे हैं। क्या यह मुमकिन है कि वह अब भी जीवित बचा होगा। कृपया अब मुझे उसकी याद ताजा न कराइये। आप भोग लगाकर गन्तव्य पथ की ओर प्रस्थान किजिए।” साधु महाराज ने पुन: बेटे को बुलाने के लिए आग्रह किया।

विवश होकर वृद्धा ने पुकारा, “मंगलिया।” मंगलिया फौरन एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। तब साधु महाराज ने मंगलिया को प्रसाद दिया और वृद्धा से कहा, “माई। तुम्हारा मंगलवार का व्रत सफल है। तुम्हारे हृदय में दया है और अपने इष्ट के प्रति अटल विश्वास तथा निष्ठा है। इसलिए तुम्हारा कभी कोई अनिष्ट नहीं कर सकता है।” 

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