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Rabindranath Tagore

Rabindranath Tagore Facts, रवीन्द्रनाथ टैगोर, Rabindranath Tagore Biography

Rabindranath Tagore Biography(रवीन्द्रनाथ टैगोर): Rabindranath Tagore (1861-1941) was the youngest son of Debendranath Tagore (Rabindranath Tagore Biography), a leader of the Brahmo Samaj, which was a new religious sect in nineteenth-century Bengal and which attempted a revival of the ultimate monistic basis of Hinduism as laid down in the Upanishads. Rabindranath Tagore (Rabindranath Tagore Biography), who composed the National Anthem of India and won the Nobel Prize for Literature, was a multitalented personality in every sense. He was a Bengali poet, Brahmo Samaj philosopher, visual artist, playwright, novelist, painter and a composer. He was also a cultural reformer who modified Bengali art by rebuffing the strictures that confined it within the sphere of classical Indian forms.

Though he was a polymath, his literary works alone are enough to place him in the elite list of all-time greats. Even today, Rabindranath Tagore (Rabindranath Tagore Biography) is often remembered for his poetic songs, which are both spiritual and mercurial. He was one of those great minds, ahead of his time, and that is exactly why his meeting with Albert Einstein is considered as a clash between science and spirituality. Tagore was keen in spreading his ideologies to the rest of the world and hence embarked on a world tour, lecturing in countries like Japan and the United States. Soon, his works were admired by people of various countries and he eventually became the first non-European to win a Nobel Prize.

Apart from Jana Gana Mana (the National Anthem of India), his composition ‘Amar Shonar Bangla’ was adopted as the National Anthem of Bangladesh and the National Anthem of Sri Lanka was inspired by one of his works. Rabindranath Tagore’s (Rabindranath Tagore Biography) traditional education began in Brighton, East Sussex, England, at a public school. He was sent to England in the year 1878 as his father wanted him to become a barrister. He was later joined by some of his relatives like his nephew, niece and sister-in-law in order to support him during his stay in England.

Rabindranath (Rabindranath Tagore Biography) had always despised formal education and thus showed no interest in learning from his school. He was later on enrolled at the University College in London, where he was asked to learn law. But he once again dropped out and learned several works of Shakespeare on his own. After learning the essence of English, Irish and Scottish literature and music, he returned to India and married Mrinalini Devi when she was just 10 years old. Tagore had early success as a writer in his native Bengal. With his translations of some of his poems he became rapidly known in the West.

In fact his fame attained a luminous height, taking him across continents on lecture tours and tours of friendship. For the world he became the voice of India’s spiritual heritage; and for India, especially for Bengal, he became a great living institution. Rabindranath’s (Rabindranath Tagore Biography) father had bought a huge stretch of land in Santiniketan. With an idea of establishing an experimental school in his father’s property, he shifted base to Santiniketan in 1901 and founded an ashram there. It was a prayer hall with marble flooring and was named ‘The Mandir.’

The classes there were held under trees and followed the traditional Guru-Shishya method of teaching. Rabindranath Tagore(Rabindranath Tagore Biography) hoped that the revival of this ancient method of teaching would prove beneficial when compared to the modernized method. Unfortunately, his wife and two of his children died during their stay in Santiniketan and this left Rabindranath distraught. In the meantime, his works started growing more and more popular amongst the Bengali as well as the foreign readers.

This eventually gained him recognition all over the world and in 1913 Rabindranath Tagore (Rabindranath Tagore Biography) was awarded the prestigious Nobel Prize in Literature, becoming Asia’s first Nobel laureate. Rabindranath Tagore(Rabindranath Tagore Biography) spent the last four years of his life in constant pain and was bogged down by two long bouts of illness. In 1937, he went into a comatose condition, which relapsed after a period of three years. After an extended period of suffering, Tagore died on August 7, 1941 in the same Jorasanko mansion in which he was brought up.

Rabindranath Tagore Biography, रवीन्द्रनाथ टैगोर

रवीन्द्रनाथ टैगोर जीवन परिचय | Rabindranath Tagore Biography

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म देवेन्द्रनाथ ठाकुर और शारदा देवी के सन्तान के रूप में ७ मई १८६१ को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। इस कारण टैगोर और इनका शेष परिवार कुछ समय तक काफ़ी समस्याओं से घिरा रहा था। रविंद्रनाथ टैगोर एक विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार और दार्शनिक थे। वे अकेले ऐसे भारतीय साहित्यकार हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है। वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम एशियाई और साहित्य में नोबेल पाने वाले पहले गैर यूरोपीय भी थे। वह दुनिया के अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान हैं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’।

गुरुदेव के नाम से भी प्रसिद्ध रविंद्रनाथ टैगोर ने बांग्ला साहित्य और संगीत को एक नई दिशा दी। उन्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य और बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया। इससे बंगाली साहित्य क्लासिकल संस्कृत के प्रभाव से मुक्त हो गया। रविंद्रनाथ टैगोर ने भारतीय सभ्यता की अच्छाइयों को पश्चिम में और वहां की अच्छाइयों को यहाँ पर लाने में प्रभावशाली भूमिका निभाई। उनकी प्रतिभा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की जब वे मात्र 8 साल के थे तब उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी। 16 साल की उम्र में ‘भानुसिम्हा’ उपनाम से उनकी कवितायेँ प्रकाशित भी हो गयीं। वह घोर राष्ट्रवादी थे और ब्रिटिश राज की भर्त्सना करते हुए देश की आजादी की मांग की। जलिआंवाला बाग़ कांड के बाद उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाइटहुड का त्याग कर दिया।

रवीन्द्रनाथ टैगोर(Rabindranath Tagore Biography) का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। वह अपने माँ-बाप की तेरह जीवित संतानों में सबसे छोटे थे। जब वे छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया और चूँकि उनके पिता अक्सर यात्रा पर ही रहते थे इसलिए उनका लालन-पालन नौकरों-चाकरों द्वारा ही किया गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर परिवार ‘बंगाल रेनैस्सा’ (नवजागरण) के अग्र-स्थान पर था। वहां पर पत्रिकाओं का प्रकाशन, थिएटर, बंगाली और पश्चिमी संगीत की प्रस्तुति अक्सर होती रहती थी| इस प्रकार उनके घर का माहौल किसी विद्यालय से कम नहीं था। उनके सबसे बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे।

उनके एक दूसरे भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे। उनके एक और भाई ज्योतिन्द्रनाथ संगीतकार और नाटककार थे। उनकी बहन स्वर्नकुमारी देवी एक कवयित्री और उपन्यासकार थीं। पारंपरिक शिक्षा पद्धति उन्हें नहीं भाती थी इसलिए कक्षा में बैठकर पढना पसंद नहीं था। वह अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के साथ परिवार के जागीर पर घूमा करते थे। उनके भाई हेमेंद्रनाथ उन्हें पढाया करते थे। इस अध्ययन में तैराकी, कसरत, जुडो और कुश्ती भी शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने ड्राइंग, शरीर रचना, इतिहास, भूगोल, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी भी सीखा। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि औपचारिक शिक्षा उनको इतनी नापसंद थी कि कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में वो सिर्फ एक दिन ही गए।

14 नवम्बर 1913 को रविंद्रनाथ टैगोर(Rabindranath Tagore Biography) को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था  स्वीडिश अकैडमी ने उनके कुछ कार्यों के अनुवाद और ‘गीतांजलि’ के आधार पर उन्हें ये पुरस्कार देने का निर्णय लिया था। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया जिसे रविंद्रनाथ ने 1919 के जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड के बाद छोड़ दिया। सन 1921 में उन्होंने कृषि अर्थशाष्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर उन्होंने अपने आश्रम के पास ही ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया।अपने जीवन के अंतिम दशक में रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore Biography) सामाजिक तौर पर बहुत सक्रीय रहे।

इस दौरान उन्होंने लगभग 15 गद्य और पद्य कोष लिखे। उन्होंने इस दौरान लिखे गए साहित्य के माध्यम से मानव जीवन के कई पहलुओं को छुआ। इस दौरान उन्होंने विज्ञानं से सम्बंधित लेख भी लिखे। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये। वर्ष 1937 के अंत में वो अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे। लगभग तीन साल बाद एक बार फिर ऐसा ही हुआ। इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कवितायें लिखते। इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं। लम्बी बीमारी के बाद 7 अगस्त 1941 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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