भाग्य सूक्तं
Bhagya Suktam
भाग्य सूक्तं (Bhagya Suktam)
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना ।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम ॥१॥
अर्थ- हम प्रात : के समय पर अग्नि , वरुण ,इन्द्र ,मित्र ,अश्विन कुमार ,भग , पूष,ब्रह्मनास्पति ,सोम ,रूद्र का आवाहन करते हैं
प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता ।
आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह ॥२॥
अर्थ- हम शक्तिशाली , युद्ध में जीतने वाले भग का आवाहन करते हैं जिनके बारे में सोचकर राजा भी कहते हैं की हमें भग दीजिये
भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः ।
भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम ॥३॥
अर्थ- हे भग हमारा मार्गदर्शन करें ,आपके उपहार अनुकूल हैं ,हमें ऐश्वर्य दीजिये हे भग ! हमें घोडे {सवारी } और योधा रिश्तेदार दीजिये
उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम् ।
उतोदिता मघवन्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम ॥४॥
अर्थ- कृपा कीजिये कि अब हमें सुख-चैन मिले , और जैसे जैसे दिन बढ़ता जाये , जैसे -जैसे दोपहर हो , शाम हो हम देव कृपा से प्रसन्न रहे
भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम ।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति स नो भग पुरएता भवेह ॥५॥
अर्थ- हे भग आप परमानंद प्रदान करें और आपके द्वारा देव हमें प्रसन्नता से स्वीकार करें हे भग हम आपका आवाहन करते हैं ,आप यहाँ हमारे साथ आयें
समध्वरायोषसो नमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय ।
अर्वाचीनं वसुविदं भगं नो रथमिवाश्वा वाजिन आ वहन्तु ॥६॥
अर्थ- इस प्रकार प्रतिदिन भग यहाँ आयें {पवित्र स्थान जैसे दधिक्रावन }जैसे शक्तिशाली घोड़े रथ को खींचते हैं वैसे ही भग का यहाँ आवाहन किया जाये
अश्वावतीर्गोमतीर्न उषासो वीरवतीः सदमुच्छन्तु भद्राः ।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीता यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥७॥
अर्थ- इस प्रकार कृतार्थ सुबह हमें प्राप्त हो हमें हमें घोडे और योधा रिश्तेदार प्राप्त हो हे देव हमें अपने आशीर्वाद दीजिये
॥ इति भाग्य सूक्तं संपूर्ण ॥