Kshetrapal Gutika (क्षेत्रपाल गुटिका) : Lord Kshetrapal is considered to be the protector and patron deity of the world (region), in whose shelter every common and special person approaches for a happy future. According to the scriptures, Lord Bhairav has originated from the blood of Shiva. This blood stream is divided into two parts. One took the form of Batuk Bhairav and the second was born of Bhairav (Regional). Bhairav, the fifth incarnation of Lord Shiva, is also called Bhairavnath. His worship is a special significance in the Nath sect. In order to solve the problems of calamities and various types of problems, devotees take shelter of God Kshetrapal Gutika.
For the avoidance of fear in Kaliyug, worshiping of Gutika is the best solution. Kal Bhairav is considered as the form of Shiva. The person who performs the worship of Kaal Bhairav does not have any fear of any kind. The meaning of Bhairav is very horrible. He is the chief warrior of Lord Shiva. Dark black color, gross body, fiery eyes, dark spooky clothes, garland of Rudraksha, terrible rod of iron in hands and riding black dogs are mythological gods of fear. Where Bhairav is known as Shiva’s Gana, he is considered as the successor of Durga. Bhairav rides dogs. The jasmine flowers are specially loved by him.
Bhairav is considered to be the god of the night. Bhairav means to fill the world by defeating fear. According to mythological belief Kshetrapal Gutika contains the power of Brahma, Vishnu and Mahesh all three. In the 31st chapter of Kashikhand of Skandpurana, the story of his arrival gets mentioned. When Bhairav participated in the killing the fifth head of proudy Brahma with the finger nail of left hand he became the part of the killing then the defect was brought to end by reaching Lord Shiva’s beloved Kashi. In Kalika Purana, Bhairav has been described as a Gana of Shiva like Nandi. In Shivamahapuran, Bhairav has been written as Lord Shankar as the perfect one-
Bhairavah purnrupohi shankrasy pratamanah।
Mudhastevai na jaananti mohitah shivmayya।।
This gutika is an important gutika. This gutika is immortalized by the Rishis of Astro-Mantra, who immediately starts working on wearing.
How to hold Kshetrapal Gutika:
Deepak is lit on the basis of its element in front of the kshetrapal gutika. To make the deity happy, the lamp of desi ghee should be lit. Mustard and jasmine oil have been best considered to suppress the enemy. This gives grace of God. After lighting the lamp, read the following mantra 108 times and keep the gutika around the neck. This Kshetrapal Gutika sold by us are duly sanctified and energized by the expert Pundits and Sages of astromantra.com for immediate retention and ready to wear.
Mantra:
।।Ksham ksheem kshum kshaim kshah hum sthan kshetrapal dhup deepam sahitam
Balim grahan-grahan sarvan kaman puray-puray swaha।।
क्षेत्रपाल गुटिका : क्षेत्रपाल विश्व(क्षेत्र) के रक्षक व पालक देवता माने जाते हैं, जिनकी शरण में हर आम व खास व्यक्ति पहुंचकर अपने सुखद भविष्य की कामना करता है। शास्त्रों के अनुसार शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई है। यह रुधिर धारा दो भागों में विभक्त हो गई। एक ने बटुक भैरव का रूप ले लिया और दूसरे ने काल भैरव (क्षेत्रपाल) का प्रादुर्भाव हुआ। भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ संप्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है। संकटों, आपदाओं और विभिन्न प्रकार की समस्याओं के निवारण के लिए भक्त, भगवान क्षेत्रपाल गुटिका का आश्रय ग्रहण करते हैं। कलियुग में भय से बचने के लिए क्षेत्रपाल गुटिका की आराधना सबसे अच्छा उपाय है।
काल भैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है। काल भैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता है। भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भयानक। वह भगवान शिव का प्रमुख योद्धा है। गहरा काला रंग, स्थूल शरीर, उग्र नेत्र, काला डरावना वस्त्र, रुद्राक्ष की कंठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दंड और काले कुत्ते की सवारी करने वाले भैरव भय के पौराणिक देवता हैं। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वह मां दुर्गा के अनुचर माने गए हैं। भैरव कुत्ते की सवारी करते हैं। चमेली का फूल इनको विशेष प्रिय है।
भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। भैरव का अर्थ भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला होता है। पौराणिक मान्यतानुसार क्षेत्रपाल गुटिका में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। स्कंदपुराण के काशीखंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा का उल्लेख मिलता है। गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तब भगवान शिव की प्रिय काशी में आकर दोष मुक्त हुए। कालिका पुराण में भैरव को नंदी की तरह शिवजी का एक गण बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को भगवान शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है-
भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः।
मूढ़ास्तेवै न जानंति मोहिताः शिवमायया।।
यह गुटिका एक महत्वपूर्ण गुटिका है। यह गुटिका एस्ट्रो-मंत्रा के ऋषियों द्वारा प्राण प्रतिष्ठित है जो धारण करने पर तुरंत काम करने लगती है।
गुटिका धारण के उपाय:
क्षेत्रपाल गुटिका के सम्मुख उनके तत्व के आधार पर दीपक जलाये जाते हैं। देवता को प्रसन्न करने के लिए देसी घी का दीपक जलाना चाहिए। शत्रु का शमन करने के लिए सरसों व चमेली का तेल सर्वोत्तम माने गए हैं। इससे देवता की कृपा प्राप्त होती है। दीपक जलाने के बाद निम्न मन्त्र को 108 बार पढ़ कर क्षेत्रपाल गुटिका को गले में धारण करें।
मन्त्र:
|| क्षां क्षीं क्षुं क्षें क्ष: हुं स्थान क्षेत्रपाल धुप दीपं सहितं
बलिम ग्रहण-ग्रहण सर्वान कामान पूरय-पूरय स्वाहा ||
Kshetrapal Gutika Details:
Shape: Cylindrical
Color: Yellow
Size: 2 x 1.5 x 1 cm
Weight: 6 gm Approx.
Shipping: Within 4-5 Days in India
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