what is mantra sadhna, मंत्र साधना

What is Mantra Sadhna/मंत्र साधना

What is Mantra Sadhna/मंत्र साधना: शब्द ही “ब्रह्म” है, शब्दों का विशेष संयोजन ही मन्त्रकहलाता है। ‘शब्द’ के बिना शब्द के अर्थ की उत्पत्ति सम्भव नहीं है। इसलिए ‘शब्द’ और ‘अर्थ’ का सम्बन्ध ठीक वैसा ही है, जैसा कि ‘शिव’ और ’शक्ति’ का। शब्द के मूल में शक्ति का विचरण होता है, जिसका सम्बन्ध मनुष्य की भावना एवं ईश्वर से रहता है, ‘गुहाति गुह्य गोप्तत्वं’ के अनुसार मन्त्र को मन ही मन गोपनीय रखकर जाप करने से ध्यान होता है जिससे परमात्मा की प्राप्ति होती है। मन्त्र केवल ध्वनि ही नहीं है अपितु उसके मूल में पूर्ण शक्ति तत्व विद्धमान है। यह एक प्रकार की सांकेतिक एवं भावनात्मक भाषा है। मन्त्र उच्चारण से एक विशिष्ट प्रकार का ध्वनि कम्पन (Vibration) बनता है, जो तुरंत ईथर में मिलकर पूरे विश्व के वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है। (मंत्र साधना)

वागर्था विव सम्प्रव्क्तौ वागर्थ प्रतिपतत्ये।
जगत:  पितरौ वन्दे   पार्वती   परमेश्वरी॥

जैसे :- सूर्य का कोई मन्त्र है, तो सूर्य मन्त्र के उच्चारण से एक विशेष प्रकार की ध्वनि कम्पन बनता है वह कम्पन ऊपर उठते हुए ‘ईथर’ के माध्यम से कुछ ही क्षणों में सूर्य देवता तक पहुँच कर लौट आता है। लौटते समय उन कम्पनो में सूर्य की सूक्ष्म शक्ति, तेजस्विता एवं चेतना विद्धमान रहती है, जो पुन: साधक के शरीर से टकरा कर उसमें उन गुणों का संचार बढ़ा देती है, जिस कामना के साथ साधक ने मन्त्र का जाप किया था इस प्रकार सूर्य मन्त्र के उच्चारण से सूर्य से सम्बन्धित तेजस्विता साधक को प्राप्त हो जाती है। (मंत्र साधना)

शरीर :

मनुष्य शरीर ब्रह्माण्डमय है और यह सृष्टि लयात्मक (Rhythmic) है। इस ब्रह्माण्डमय शरीर में सत् से रजस, रजस से तमस और तमस से सत् में शक्ति का शाश्वत प्रवाह (Flow) होता रहता है। जिसमें रूद्र, विष्णु और ब्रह्मा का स्थान हैं। और इन्द्रियों (Sense Organs) पर इन्द्र का शासन है। यह सब कार्य-कलाप 72000 नाड़ियों के माध्यम से होता है। ये नाडियां तन्तु नहीं हैं, यह शरीर के अवयवों में पैदा होने वाली लय हैं। इन लयों में सूर्य, चन्द्र और सुषुम्ना लय मुख्य हैं, जो इच्छा के आधीन हैं। ये ही जीवन की धारा को मोडती, मरोड़ती रहती है। मंत्र की इन्हीं 72000 लयों में से कुछ लयों को परिमार्जित, परिष्कृत करके मनुष्य आगे बढ़ता है। (मंत्र साधना)

मंत्र पाठ का स्वरूप भी लयात्मक है। मंत्र की लय को वैदिक साहित्य में छन्द का नाम दिया गया है। साधना के समय जो मंत्रोच्चारण होता है, मन्त्र स्वर का आरोह-अवरोह होता है, वह एक लय होती है, यह लय एक क्रम भी होता है। इस लय में इच्छा, वासना और संकल्प शक्ति समाहित होती है। मन्त्र के प्रत्येक स्वर में वासना शक्ति का होना सफलता के लिये अत्यावश्यक है। वासना संकल्प शक्ति को जन्म देती है। संकल्प शक्ति से मन्त्र कार्य करता है, बिना संकल्प शक्ति के मंत्र निर्जीव रहता है। (What is Mantra Sadhna)

मन्त्र आत्मा :

मंत्र का चयन बड़े विधि-विधान से होता है इसमें मन्त्र की आत्मा को समझना आवश्यक है क्या मन्त्र शिव है? या शक्ति है? या अणु परमाणु है?

हर तत्व में शिव, शक्ति और अणु इन तीनों का समावेश होता है, बिना इन तीनों के किसी पदार्थ या तत्व की कल्पना नहीं की जा सकती। विश्व इन तीनों तत्वों से प्रतिष्ठित है। अत: ‘मन्त्र’ में भी इन तीनों तत्वों का उचित सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व होता है। शिव, शक्ति के माध्यम से ही सृष्टि स्थिति संहार आदि कृत्य करती है और इन कृत्यों का आधार आत्मा ही होती है। इस प्रकार शिव, शक्ति और आत्मा ये तीन ही तत्व सर्वोपरि है। शिव और शक्ति के उचित सामंजस्य के कारण ही मन्त्र भोग और मोक्ष दोनों ही गतियाँ देने में समर्थ है। (What is Mantra Sadhna)

मन्त्र और स्तोत्र में भेद होता है, स्तोत्र केवल मात्र किसी देवता की स्तुति होती है जो किसी भी प्रकार के शब्दों में सम्भव है, यदि स्तोत्र में निहित शब्दों को बदल भी दें तो कोई अंतर नहीं पड़ता, स्तोत्र में एक ही भाव को भिन्न भिन्न शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है पर मन्त्र में ऐसा सम्भव नहीं, स्तोत्र के शब्दों को बदल देने पर भी स्तोत्र, मन्त्र का स्थान ग्रहण कर नहीं सकता पर आन्तरिक मन और प्राण शक्ति से एकाग्र होकर स्तोत्र का पाठ नियमित करें तो वह स्तोत्र भी ‘मन्त्र’ का रूप धारण कर लेता है, कालान्तर में वह स्तोत्र भी उतना ही फलप्रद बन जाता है, जितना कि मन्त्र। हनुमान चालीसा या ‘कनकधारा स्तोत्र’ एक प्रकार से मन्त्र के रूप में प्रयुक्त होते है और साधक के कार्य में मन्त्रवत सफलता देते है। (What is Mantra Sadhna)

मंत्र देवता स्वरूप है, निरन्तर मंत्र जप से देवता का साक्षात्कार होता है। निरन्तर प्रयास करने पर भी यदि देवता के दर्शन नहीं होते तो फिर गुरु की सहायता लेनी पड़ती है। वैदिक मन्त्रों में यह प्रक्रिया लुप्त हो गई है। इसीलिए वैदिक मंत्र आज के युग के लिये पूर्ण फलदायी नही हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि कलयुग आने से पूर्व आशुतोष भगवान ने इन सारे वैदिक मंत्रो को श्रापित और कीलित कर दिया था। इन मंत्रो के जाप से पूर्व श्राप विमोचन और उत्कीलन करना अति आवश्यक है। उत्कीलन व श्राप विमोचन की क्रियाएं प्रत्येक मंत्र की अलग-अलग है। यह क्रिया गुरु के माध्यम से ही प्राप्त होती है। यही कारण है कि आजकल मन्दिरों में मन्त्र जाप व पूजन करने पर भी देवता सुषुत्पि अवस्था में हैं, हिन्दू धर्म निर्जीव होता जा रहा है। कर्मकाण्डी पंडित मन्त्र के ज्ञान से अनजान है, बस तोते की तरह मन्त्र रटते और समय व्यतीत करते हैं। इससे मन्त्र जाप का कोई फल प्राप्त नहीं होता। (What is Mantra Sadhna)

मन्त्र जप :

मन्त्र के निरन्तर जप को साधना कहते है, मंत्र जप तीन प्रकार के बताए गए हैं।

  • वाचिक जप – जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है।
  • उपांशु जप – जिस मंत्र जप में केवल जीभ एवं होठ हिलते है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है, जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।
  • मानस जप – जिस मंत्र जप में होठ, दांत, जीभ, बिल्कुल नहीं हिलते, मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करते है। वह मानस जप कहलाता है।

इन तीनों मन्त्र जपो में उपांशु जप सर्वश्रेठ है अर्थात् मंत्र जप उपांशु ही करना चाहिए मन्त्र को पूर्णत: गोपनीय रखना चाहिये ऐसा शास्त्रों में बार-बार उल्लेख है।

गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
त्व्यापि गापित्वयं हि न देयं यस्य कस्यचित्॥

आसन :

साधना में आसन का महत्वपूर्ण स्थान है। आसन दो तरह का निर्देश दर्शाता है, एक बैठने के स्थान और दूसरा बैठने के प्रकार को। वर्तमान युग में समतल भूमि पर पशु चर्म बिछा कर उस पर पद्मासन या इससे मिलते-जुलते आसन में घण्टों तक बैठना हर किसी के बस की बात नहीं है, क्योंकि लोग कुर्सी पर बैठने के आदी हैं।

आसन का तात्पर्य किसी भी बैठने की मुद्रा से है, जिसमें पैरों को असुविधा न हो, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे, शरीर के अन्दर के अंगों पर ज्यादा दबाव न पड़े, मन एकाग्र रहे। मन स्थिर रहना ही साधना है। गलत आसन में बैठकर मन एकाग्र नहीं रह पता। बैठने के आसन में ऊनी आसन का प्रयोग करें तो सर्वश्रेष्ठ है।

शिव गीता अनुसार :

  • ऊनी आसन पर बैठकर जप करने से समस्त प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है।
  • व्याग्रचर्म के आसन पर बैठकर जप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • काले चर्म के आसन पर बैठकर जप करने से मुक्ति होती है।
  • कुशा के आसन पर बैठकर जप करने से ज्ञान की प्राप्ति होता है।
  • पत्तों के आसन पर बैठकर जप करने से दीर्घायु प्राप्त होती है।
  • पत्थर के आसन पर बैठकर जप करने से दुःख प्राप्त होता है।
  • काष्ठ के आसन पर बैठकर जप करने से रोग प्राप्त होता है।
  • तृणासन के आसन पर बैठकर जप करने से यश, मान, लक्ष्मी की हानि होती है।
  • बांस के आसन पर बैठकर जप करने से दरिद्रता प्राप्त होती है।
  • भूमि के ऊपर बैठकर जप करने से कोई मनोरथ पूरा नहीं होता, उससे किसी भी साधना में सफलता नहीं मिलती।

“वस्त्रासने तु दरिद्रयं पाषाणे व्याधिपीडनम्”

मन्त्र साधना और मन्त्र विधान Read more..