Ganesh Sahastranam Stotram Book | गणेश सहस्त्रनाम स्तोत्रम् पुस्तक
Ganesh Sahastranam Stotram Book/गणेश सहस्त्रनाम स्तोत्रम् पुस्तक: This long commentary was published many years ago in 1955 from the Nirnay Sagar Press of Bombay. But due to lack of publicity and dissemination it could not be made available to everyone. Its absence was painful, but we got one or two copies of it and since then the debates about its publication continued.
With the inspiration of the same Lord, it is now being published and coming out. This time’s edition has been prepared with special care and hard work in which our dear disciple Dr. Shitala Prasad Upadhyay (Professor, Sankhyayogatamtragam Department, Sampurnanand Sanskrit University) has contributed the most. It is hoped that it will prove useful for all three, Major edition students, researchers and practitioners.
Specialty of Ganesh Sahastranam Stotram:
Almost all the thousands of names of Gods and Goddesses are available in various texts like Puranas, Tantras etc. Many thousand names of Ganesha are also available here and there. But it is necessary to consider the main and secondary aspects in it.
The presented Ganesh Sahasranama is of Mahaganapati. The head of Ganesh Devtavyuh, whose method of worship is mentioned in the scriptures. Especially in Parashuram Kalpa Sutra, whose method is given along with Srividya. Therefore, among Ganesha idols, like Mahaganapati, this is the best among his many thousand names.
Description of Ganesh Sahastranam Stotram Book:
This Sahasranama is a part of the worship of the main incarnation. In the classical definition, it is both auspicious and propitious, that is, being a part of the worship of Mahaganpati. It is fruitful in group and independent recitation as well. In fact, according to Tasvasthaya definition, Ganesh is the first wave of Anastabrahmandanyapakanadavimudra. This thing is written in the first verse of Vidyaganchandrika.
Being the first pulse of Shakti, he is the son of Mahabali Uma. Their scope and power are infinite. In ‘Sadyot’ commentary, Babarya Charan has given a detailed description of his supreme form. Maha Sahasranama is available in both Padmapuran and Ganeshpuran. But accepting the specialty of recitation of Ganeshpuran, Acharya has decided the number of verses etc. accordingly.
Lord Ganesha is famous for being the savior of all kinds of worlds and fulfilling all the anxious desires. Even in the best of times this Sahasranama has been told to Lord Shiva by Lord Ganesha himself. God himself has said.
Mulmanvadapi swomiyam priyataram mam.
That is, this Stotra is dearer to me than the original mantra. It also includes the gathering related to worship of Ganesha. Any person can recite this Sahasranama after taking orders from the Guru. God has expressed his compassion by saying ‘Strishudrapatitairavai’. It is actually similar to Kalpadrum.
Regarding Khadyot:
An ordinary man cannot be the right person to write a commentary on such an important book. Before Acharya, some person had written a commentary on these stotras. In which many mistakes and misconceptions had arisen due to ignorance.
Ganesha devotees got the great Veda from this. With the prayers of his devotees, Aavaarya has paved the way by praising the commentary presented by him. The commentary is brief and poetic. Hence it is also called Ganesh Sahasranamavattik. Acharya says-
Samyadayajushamev sadyoti lokabandhavah.
Pranapavistarlubdhaanam khadyoto jyotiringgunah॥
The stories of Acharya’s Vaiduvya and Ashamaramathya have been popular in the seeker community since a long time.
गणेश सहस्त्रनाम स्तोत्रम् पुस्तक | Ganesh Sahastranam Stotram Book
यह वृहद् टीका अनेक वर्ष पूर्व १९५५ ई० में बम्बई के निर्णय सागर प्रेस से प्रकाशित हुई थी, परन्तु प्रचार और प्रसार के अभाव में सभी को सुलभ न हो सकी। इसका अभाव पीड़ादायक रहा, परन्तु इसकी एक दो प्रतियाँ हमें मिल गई और तभी से इसके प्रकाशन को चर्चा चलती रही। उन्हीं प्रभु की प्रेरणा से अब यह मुद्रित होकर सामने आ रही है।
इस बार का यह संस्करण विशेष सावधानी और परिश्रम से तैयार किया गया है जिसमें हमारे प्रिय शिष्य डॉ० शीतला प्रसाद उपाध्याय (प्राध्यापक, सांख्ययोगतम्त्रागम विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय) का सर्वाधिक योगदान है।
मह संस्करण नध्येता, अनुसन्धाता और ननुष्ठाता
तीनों के लिये उपयोगी सिद्ध होगा ऐसी आशा है।
गणेश सहस्त्रनाम स्तोत्रम् की विशेषता:
प्रायः सभी देवीदेवताओं के सहस्रनाम विभिन्न पुराण, तंत्र आदि ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। गणेश के भी अनेक सहस्रनाम यत्र तत्र प्राप्य हैं। परन्तु उसमें प्रधान ओर अङ्गभाव का विचार करना आवश्यक है। प्रस्तुत गणेशसहस्रनाम गणेशदेवताव्यूह के प्रधान महागणपति का है, जिनकी उपासना विधि ग्रन्थों में है, विशेषतः परशुरामकल्प सूत्र में श्रीविद्या के साथ जिनका विधान उपणित है।
अतः गणेश मूर्तियों में महागणपति की तरह उनके अनेक सहस्रनामों में यही सर्वश्रेष्ठ है। यह सहस्रनाम प्रधान अवतार की उपासना का अङ्ग है। शास्त्रीय परिभाषा में यह कत्वर्थ और पुरुषार्थ दोनों है अर्थात् महागणपति के पूजन का अङ्ग होने से समूह और स्वतन्त्र पाठ से भी फलदायक होने से पुरुषार्थप्रद है।
वस्तुतः तस्वास्थय परिभाषा के अनुसार अनस्तब्रह्माण्डण्यापकनादाविमुद्र का प्रथम तरंग ही गणेश है। यह बात विद्यगनचन्द्रिका के प्रथम श्लोक में लिखी है। शक्ति का प्रथम स्पन्द होने से ये महाबली उमापुत्र है।
गणेश सहस्त्रनाम स्तोत्रम् पुस्तक विवरण:
इनकी व्याप्ति और सामर्थ्य अनन्त है। ‘सद्योत’ टीका में बबार्य चरण ने इनको परब्रह्मरूपता का विशद प्रतिपादन किया है। मह सहस्रनाम पद्मपुराण और गणेशपुराण दोनों में उपलभ्य है परन्तु गणेशपुराण के पाठ की विशेषता स्वीकार कर आचार्य ने तदनुसार श्लोकसंख्या आदि का निर्णय किया है।
भगवान् गणेश सभी प्रकार के विश्नों के निवारक तथा चिन्तित मनोरथ को पूर्ण करने में प्रसिद्ध है, उत्तमें भी यह सहस्रनाम स्वयं गणेशजी के द्वारा शिवजी को बताया गया है। भगवान् ने स्वयं हो कहा है-
৷मुलमन्वादपि स्वोमियं प्रियतरं मम।
अर्थात् मूलमन्त्र से भी यह स्तोत्र मुझे अत्यधिक प्रिय है। गणेशोपासना सम्बन्धी सभा इतिकर्तव्यता का भी इसमें समावेश है। इस सहस्रनाम का पाठ कोई भी व्यक्ति गुरु का आदेश पाकर कर सकता है। स्त्रीशूद्रपतितैरवि’ यह कहकर भगवान् ने अपनी करुणा प्रकट की है। यह यथार्थ रूप से कल्पद्रुम तुल्य है।
खद्योत के सम्बन्ध में:
ऐसे महत्वपूर्ण ग्रन्य पर टीका लिखने का अधिकारी सामान्य पुरुष नहीं हो सकता। आचार्य से पूर्व कोई टीका किसी व्यक्ति ने इन स्तोत्र पर लिखी थी। जिसमे अज्ञानवश अनेक प्रमाद और भ्रान्तियां उत्पन्न हो गयी थीं। गणेशभक्तों को इससे महान वेद हुआ था। उन्हों भक्तों की प्रार्थना से आवार्य ने प्रस्तुत टीका का प्रणयन कर मार्ग प्रशस्त किया है। टीका संक्षिप्त और पद्यबद्ध है। अतः इसको गणेशसहस्रनामवात्तिक भो कहते हैं। आचार्य कहते है-
सम्यदायजुषामेव सद्योती लोकबान्धवः।
प्रन्पविस्तरलुब्धानां खद्योतो ज्योतिरिङ्गुणः॥
आचार्य के वैदुव्य और तपासामथ्य की कथाएं चिरकाल से साधक समाज में विश्रुत हैं।
Ganesh Sahastranam Stotram Book Details:
Book Publisher: Prachay Publication
Book Author: Prof. Batuknath Shastri Khiste
Language: Sanskrit
Weight: 0.163 gm Approx.
Size: “18.5” x “13” x “1” cm
Pages: 123 Pages
Edition: 1881
Shipping: Within 4-5 Days in India
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