Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam, आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम

आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम/Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam

Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam/आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम

यदवधि तवतीरं पातकी नैति गंगे तदवधि मलजालैर्नैवमुक्तः कलौ स्यात्।

तव जलकणिकाऽलं पापिनां पापशुद्ध्यै पतितपरमदीनांस्त्वंहि पासि प्रपन्नान् ॥१॥

तव शिवजललेशं वायुनीतं समेत्य सपदि निरयजालं शून्यतामेतिगङ्गे।

शमलगिरिसमूहाः प्रस्फुटन्ति प्रचण्डा-स्त्वयि सखि विशतां नः पापशंका कुतः स्यात् ॥२॥

तव शिवजलजालं निःसृतं यर्हि गङ्गे सकलभुवनजालं पूतपूतं तदाभूत्।

यमभटकलिवार्ता देवि लुप्ता यमोपि व्यतिकृत वरदेहाः पूर्णकामाः सकामाः॥३॥

मधुमधुवनपूगै रत्नपूगैर्निपूगै-र्मधुमधुवनपूगैर्देवपूगैः सपूगैः

पुरहरपरमांगे भासि मायेव गंगे शमयसि विषतापं देवदेवस्य वन्द्ये ॥४॥

चलितशशिकलाभैरुत्तरंगैस्तरंगै-रमितनदनदीनामंगसंगैरसंगैः।

विहरसि जगदण्डे खण्डयन्ती गिरीन्द्रान् रमयसि निजकान्तं सागरं कान्तकान्ते ॥५॥

तव वरमहिमानं चित्तवाचाममानं हरिहरविधिशक्रा नापि गंगे विदन्ति।

श्रुतिकुलमभिधत्ते शङ्कितं ते गुणान्तं गुणगणसुविलापैर्नेति नेतीति सत्यम् ॥६॥

तवनुतिनतिनामान्यप्यघं पावयन्ति ददति परमशान्तिं दिव्यभोगान् जनानां।

इति पतितशरण्ये त्वां प्रपन्नोऽस्मि मातः ललिततरतरंगे चांग गंगे प्रसीद ॥७॥

शुभतरकृतयोगाद्विश्वनाथप्रसादात् भवहरवरविद्यां प्राप्य काश्यां हि गंगे।

भगवति तव तीरे नीरसारं निपीय मुदितहृदयकञ्जे नन्दसूनुं भजेऽहम् ॥८॥

Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam/आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम विशेषताऐ: 

आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम के साथ-साथ यदि गंगा आरती की जाए तो, इस अष्टकम का बहुत लाभ मिलता है यह अष्टकम शीघ्र ही फल देने लग जाती है, अगर साधक गंगा अष्टकम के साथ साथ ही मोती माला से जाप करने से मनोवांछित कामना भी पूर्ण होने लगती है| यदि गंगा अष्टकम के साथ गंगा सोत्र का पाठ किया जाए तो रुके हुए कार्य भी स्वयं ही पूर्ण होने लगते है|और सभी बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होने लगती है यदि आप जीवन में सफलता प्राप्त करने की तलाश कर रहे हैं, और अपनी सभी परेशानियों को दूर करना चाहते है तो आपको गंगा अष्टकम का पाठ रोज करना चाहिए।