Shakuntlam Suktam, शाकुन्‍तलम् सूक्तं

शाकुन्‍तलम् सूक्तं

Shakuntla Suktam

(शाकुन्‍तलम् सूक्तं/Shakuntla Suktam)

आ त्वाहार्षमन्तरेधि ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलिः ।

विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधि भ्रशत् ॥1॥

अर्थ- प्रजातंत्र में जन – राजा है उसे सब पर अंकुश रखना है। देश का अहित न होने पाए उसे इस चिंतन पर चलना है ॥1॥

इहैवैधि माप च्योष्ठा: पर्वत इवाविचाचलिः ।

इन्द्र इवेह ध्रुवस्तिष्ठेह राष्ट्रमु धारय ॥2॥

अर्थ- हे  प्रजा  तुम्हीं  तो  राजा  हो  कर्तव्य – परायण बन जाओ। सूर्य समान अटल रहकर तुम राष्ट्र -प्रगति में जुट जाओ ॥2॥

इममिन्द्रो    अदीधरद्    ध्रुवं  ध्रुवेण   हविषा ।

तस्मै सोमो अधि ब्रवत्तस्मा उ ब्रह्मणस्पतिः ॥3॥

अर्थ- जनता  जागरूक  हो  यदि  तो  देश  में  स्थिरता आती है। जग में उसका जस बढता है जनता जनप्रिय बन जाती है ॥3॥

ध्रुवा   द्यौर्ध्रुवा  पृथिवी  ध्रुवासः  पर्वता   इमे ।

ध्रुवं  विश्वमिदं जगद् ध्रुवो राजा विशामयम् ॥4॥- Shakuntla Suktam

अर्थ- ध्रुव- सम अटल रहे यह धरती प्रजा के हाथ में ही सत्ता हो। सबका हो अधिकार बराबर वाशिंगटन हो या कलकत्ता हो ॥4॥

ध्रुवं  ते  राजा  वरुणो   ध्रुवं  देवो बृहस्पतिः ।

ध्रुवं  त  इन्द्रश्चाग्निश्च  राष्टं धारयतां ध्रुवम् ॥5॥

अर्थ- कृपा  रहे  नित  वरुण- देव  की  बृहस्पति दें उत्तम ज्ञान। अग्नि – देव से यह विनती है स्थिर हो मेरा राष्ट्र – महान ॥5॥

ध्रुवं    ध्रुवेण   हविषाभि   सोमं    मृशामसि ।

अथो  त इन्द्रः केवलीर्विशो  बलिहृतस्करत् ॥6॥

अर्थ- सोम – देव  आशीष  हमें  दें  बढ  जाए  भारत- स्वाभिमान। देश के हित में जनता जागे सिरमौर बने फिर हिन्दुस्तान॥6॥- Shakuntla Suktam