बगलामुखी सूक्तं | Baglamukhi Suktam
बगलामुखी सूक्तं (Baglamukhi Suktam)
यां ते चक्रु रामे पात्रे यां चक्रर्मिश्र घान्ये।
आमे मांसे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!1!!
अर्थ:- अभिचार करने वाले ने अच्छे मिट्टी के पात्र में या घान, जौ गेंहू, उपवाक, तिल, कांगनी के मिश्रित घान्यों में अथवा कुक्कुटादि से कच्चे मांस में, हे कृत्ये! तुझे किया है। मैं तुझे उपचार करने वाले पर ही वापस भेजता हूँ !!1!!
यां ते चक्रुः कृक वाकावजे वा यां कुरीरिणिं।
अव्यां ते कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!2!!
अर्थ:- हे कृत्ये! तुझे मुर्गे, बकरे या पेड़ पर किया है, तो हम अभिचार करने वाले पर ही लौटाते हैं !!2!!
यां ते चक्रुः रेक शफे पशूना मृभयादति।
गर्दभे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!3!!
अर्थ:- हे कृत्ये! अभिचारकों ने तुझ एक खुर वाले अथवा दोनांे दाँत वाले गघे पर किया है तो तुझे अभिचारक पर ही लौटाते हैं !!3!!
यां ते चक्रुः रमूलायां वलगं वा नराच्याम्।
क्षेत्रे ते कृत्या मां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!4!!
अर्थ:- हे कृत्ये! यदि तुझे मनुष्यों से पूजित भक्ष्यं पदार्थ में ढक कर खेत में किया गया है तो तुझे अभिचारक पर ही लौटाते हैैं !!4!!
यां ते चक्रुः र्गार्हपत्ये पूर्वाग्नावुत दुश्चितः।
शालायां कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!5!!
अर्थ:- हे कृत्ये! तुझे गार्हपत्याग्नि या यज्ञशाला में किया गया है, तो तुझे अभिचारक पर लौटाते है !!5!!
यां ते चक्रुः सभायां यां चक्रु रघिदेवने।
अक्षेषु कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!6!!
अर्थ:- हे कृत्ये! तुझे सभा में या जुएं के पाशों में किया गया है तो अभिचारक पर ही लौटाते हैं !!6!!
यां ते चक्रुः सेनायां यां चक्रु रिष्वायुघे।
दुन्दुभौ कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!7!!
अर्थ:- सेना के बाण अथवा दुन्दुभि पर जिस कृत्या को किया है, उसे मैं अभिचारक पर ही लौटाता हूँ !!7!!
यां ते कृत्यां कूपेऽवदघुः श्मशाने वा निचरन्तुः।
सद्यनि कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!8!!
अर्थ:- जिस कृत्या को कुएं में डालकर, श्मशान में गाड़ कर अथवा घर में किया है, उसे मैं वापस करता हूँ !!8!!
यां ते चक्रुः पुरूषास्थे अग्नौ एंक सुके च याम्।
म्रोकं निर्दांह क्रव्यादं पुनः प्रति हरामि ताम् !!9!!
अर्थ:- पुरुष की हड्डी पर या टिमटिमाती हुई अग्नि पर जिस कृत्या को किया है, उसे मांसभक्षी अभिचारक पर ही पुनः प्रेसित करता हूँ !!9!!
अपथेना जभारैणां तां पथेतः प्रहिण्मसि।
अघीरो मर्या घीरेभ्यः सं जभाराचित्या !!10!!
अर्थ:- जिस अज्ञानी ने कृत्या को कुमार्ग से हम मर्यादित लोगों पर भेजा है, हम उसे उसी मार्ग से उसकी (भेजने वाले की) ओर प्रेरित करते हैं !!10!!
यश्चकार न शशाक कर्तु शश्रे पदामग्ङलिम्।
चकार भद्र मस्मभयम भगौ भगवद्भ्यः !!11!!
अर्थ:- जो कृत्या द्वारा हमारी उंगली या पैर को नष्ट करना चाहता है, वह अपने इच्छित प्रयास में सफल न हो और हम भाग्यशालियों का वह अमंगल न कर सके !!11!!
कृत्यां कृतं वलगिनं मूलिनं शपथेयऽम्।
इन्द्रस्तं हन्तु महता वघेनाग्नि र्विघ्यतवस्तया !!12!!
अर्थ:- भेद रखने वाले तथा छिपकर (गुप्तरूप से) कृत्या कर्म करने वाले को, इन्द्र अपने विशाल शस्त्र से नष्ट कर दें, अग्नि उसे अपनी ज्वालाओं से जला डाले !!12!!